भाग ३ निरपेक्ष अतिरिक्त उत्पादन मूल्य का सातवां अध्याय श्रम-प्रक्रिया और अतिरिक्त मूल्य पैदा करने की प्रक्रिया अनुभाग १- श्रम-प्रक्रिया अथवा उपयोग-मूल्यों का उत्पादन पूंजीपति उपयोग में लाने के लिए अम-शक्ति खरीदता है, और उपयोगगत श्रमशक्ति स्वयं मम होती है। भम-शक्ति का प्राहक उसके विक्रेता को काम में लगाकर उसका उपभोग करता है। काम करके श्रम-शक्ति का विकता सबमुच बह बन जाता है, जो पहले वह केवल संभाव्य रूप में पा, अर्थात् वह कार्यरत बम-शक्ति, पानी मजदूर बन जाता है। यदि उसके श्रम को किसी माल के रूप में पुनः प्रकट होना है, तो उसके लिए पावश्यक है कि यह सबसे पहले अपना श्रम किसी उपयोगी वस्तु पर, यानी किसी ऐसी वस्तु पर खर्च करे, जिसमें किसी न किसी उंग की पावश्यकता को पूरा करने की सामयं हो। इसलिए, पूंजीपति मजदूर को जिस बीच के उत्पादन में लगाता है, वह कोई विशेष उपयोग-मूल्य या कोई बास बस्तु होती है। इस बात से उपयोग मूल्यों या बस्तुओं के उत्पादन के सामान्य स्वरूप में कोई अन्तर नहीं पड़ता कि यह उत्पावन पूंजीपति के नियंत्रण में और उसकी तरफ से होता है। इसलिए मम-प्रक्रिया कुछ जास सामाजिक परिस्थितियों में वो विशिष्ट रूप धारण कर लेती है, हमें पहले उसके प्रभाव से स्वतन्त्र रहकर श्रम-प्रक्रिया पर विचार करना चाहिए। श्रम सबसे पहले एक ऐसी प्रक्रिया होता है, जिसमें मनुष्य और प्रकृति दोनों भाग लेते है और जिसमें मनुष्य अपनी मर्जी से प्रकृति और अपने बीच भौतिक प्रतिक्रियामों को प्रारम्भ करता है, उनका नियमन करता है और उनपर नियंत्रण रखता है। वह प्रकृति की ही एक शक्ति के रूप में प्रकृति के मुकाबले में बड़ा होता है और अपने शरीर की प्राकृतिक शक्तियों को- अपनी बाहों, टांगों, सिर और हाथों को-हरकत में लाकर प्रकृति की पैदावार को एक ऐसी शकल में हस्तगत करने का प्रपल करता है, वो उसकी अपनी मावस्यकताओं के अनुरूप होती है। इस प्रकार बाहरी दुनिया पर असर गलकर और उसे बदलकर मनुष्य उसके साप साप
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२०५
दिखावट