पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३८६

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श्रम का विभाजन और हस्तनिर्माण ३८३ . है। एक भावमी के बारी-बारी से विभिन्न क्रियाओं को पूरा करने के बजाय अब इन क्रियाओं को असम्बद, अलग-अलग कियामों में बदल दिया जाता है, जो साथ-साथ चलती हैं। हर किया एक अलग कारीगर को सौंप दी जाती है, और इन सारी जियायें ये सहकार करने वाले मजदूर एक साथ काम करते हुए पूरी करते हैं। संयोगवश होने वाला काम का यह नये उंग का बंटवारा फिर बोहराया जाता है, उसके अपने फायदे बाहिर होते हैं, और धीरे-धीरे वह स्थायित्व प्राप्त करके सुनियोजित श्रम-विभाजन बन जाता है। अब माल एक स्वतंत्र कारीगर की व्यक्तिगत पैदावार न रहकर अनेक कारीगरों के समुदाय की सामाजिक पैदावार बन जाता है, जिनमें से प्रत्येक कारीगर उत्पादन-क्रिया की संघटक मांशिक क्रियामों में से एक को और केवल एक को ही पूरा करता है। जब जर्मनी के काग्रस बनानेवालों के किसी शिल्पी-संघ का कोई सदस्य काम करता था, तब जो क्रियाएं एक कारीगर के बारी-बारी से किये जाने वाले कामों के रूप में एक दूसरे में संविलीन हो जाती थी, वे ही कियाएं हालग के कागज के हस्तनिर्माण में अनेक प्रांशिक क्रियाओं का रूप धारण कर लेती हैं, जिनको सहकार करने वाले बहुत से मजदूर साथ-साथ करते रहते हैं। नूरेम्बर्ग के शिल्पी-संघ का सुई बनाने वाला कारीगर ही वह भाषार-शिला था, जिसपर इंगलैड के सुइयों के हस्तनिर्माण की इमारत खड़ी की गयी। लेकिन नूरेम्बर्ग में जहां एक अकेला कारीगर एक के बाब दूसरी, शायद २० क्रियानों का क्रम पूरा करता था, वहां इंगलैण्ड में वह समय पाने में बहुत देर नहीं लगी, जब २० सुई बनाने वाले साथ-साथ तो काम करते थे, पर उनमें से हरेक इन २० क्रियानों में से केवल एक क्रिया को ही पूरा करता था। थोड़ा और अनुभव प्राप्त होने पर तो इन २० क्रियाओं में से हरेक को भी छोटे-छोटे भागों में बांट दिया गया और हर भाग को अलग करके एक अलग मजदूर की बास जिम्मेवारी बना दिया गया। इसलिये, हस्तनिर्माण का उदब, बस्तकारियों में से इसका विकास दो तरह से हुआ है। एक मोर तो वह विविध प्रकार की कुछ ऐसी स्वतंत्र बस्तकारियों के एक में जुट जाने से शुरू होता है, जिनकी स्वतंत्रता गाती रहती है और जिनका इस हद तक विशिष्टीकरण हो जाता है कि वे किसी खास माल के उत्पावन की मात्र अनुपूरक एवं प्रांशिक क्रियानों में परिणत होकर रह जाती है। दूसरी पोर, वह एक बस्तकारी के कारीगरों की सहकारिता से भी शुरू होता है। इस बास बस्तकारी को वह उसकी बहुत सी तफसीली क्रियाओं में बांट देता है और इन क्रियामों को इस हद तक एक दूसरे से अलग और स्वतंत्र कर देता है कि हर क्रिया एक बास मजबूर का विशिष्ट कार्य बन जाती है। इसलिये, हस्तनिर्माण एक तरफ़ या तो उत्पादन की किसी प्रकिया में मम का विभाजन शुरू कर देता है और या उसे पौर विकसित कर देता है, और, दूसरी तरफ, वह ऐसी बस्तकारियों को एक में बोड़ देता है, जो पहले अलग-अलग थीं। लेकिन बह शुरु चाहे जहाँ से भी. हो, उसका अन्तिम म सवा एक सा होता है, यानी यह एक ऐसा उत्पादक यंत्र बन जाता है, जिसके अंग मनुष्य होते हैं। हस्तनिर्माण में भम-विभाजन को सही तौर पर समझने के लिये नीचे दी गयी बातों को मच्छी तरह समझ लेना पावश्यक है। पहली बात यह है कि यहां बब उत्पावन की कोई प्रक्रिया एक दूसरे के बाद पाने वाली अनेक प्रक्रियामों में बंट जाती है, तो उसका सदा यह मतलब होता है कि एक बस्तकारी बारी-बारी से सम्पन्न की बाने वाली हाथ की कुछ प्रक्यिानों में परिणत हो जाती है। इनमें से प्रत्येक प्रक्रिया, वह चाहे संश्लिष्ट रंग की हो या सरल ढंग की, से ही की जाती है, उसका रस्तकारी का प कायम रहता है और इसलिये वह हर अलग- .