मशीनें और माधुनिक उद्योग ४२७ काफी व्यापक पैमाने पर उपयोग किया गया था। इसका एक प्रमाण तो..यह है कि "प्रश्व- शाक्ति" शब मान तक यांत्रिक शक्ति के नाम केम्प में बीवित है। इसके साप साप, उसका दूसरा प्रमान समकालीन काश्तकारों की शिकायतें थीं। हवा बहुत अनिश्चित रहती थी, और उसपर नियंत्रण करना भी सम्भव नहीं था। इसके अलावा, इंगलैग में, दो कि माधुनिक उद्योग का जन्म स्थान है, हस्तनिर्माण के काल में भी पानी की शक्ति का ज्यादा इस्तेमाल होता था। एक अकेली पन-पक्की से प्राटा पीसने की दो पक्कियो चलाने की कोशिशें १७ वीं सदी में ही हो चुकी थी। लेकिन योक्न या गियर का प्राकार इतना बढ़ गया था कि पानी की शक्ति उसे संभाल नहीं पाती थी और वह अपर्याप्त सिड हो रही थी। यह कठिनाई भी एक कारनपी, जिसने घर्षण के नियमों का अधिक सही अध्ययन पावश्यक बनाया। इसी प्रकार यो पक्कियां एक लीवर को रवाकर और जींचकर गति में लायी जाती थी, उनमें चालक शक्ति से पैसा होने वाली अनियमितता के फलस्वरूप गतिपालक पा के सिद्धान्त ने जन्म लिया और उसका उपयोग प्रारम्भ हमा। इसने बाद में माधुनिक उद्योग में बहुत बड़ी भूमिका पदा की। इस प्रकार, हस्तनिर्माण के काल में माधुनिक यांत्रिक उद्योग के प्रथम मानिक एवं प्राविधिक तत्व विकसित किये गये। मार्कराइट की गौसल-ताई मशीन शुरू से ही पानी के जरिये चलायी जाती थी। लेकिन इस सब के बावजूद प्रमुख बालक शक्ति केस में पानी का उपयोग करने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। पानी की शक्ति को इच्छानुसार बढ़ाया नहीं जा सकता था, कुछ खास मौसमों में वह बेकार हो जाती पो; और सबसे बड़ी बात यह थी कि बुनियादी तौर पर यह एक स्थानीय ढंग की शक्ति - रहता है। अर्थात् ऐसे कार्यों में केवल मनुष्य-शक्ति ही उपयोग में आ सकती है।" इसके बाद मि० मोर्टन भाप-शक्ति , अश्व-शक्ति और मनुष्य-शक्ति को उस इकाई में परिवर्तित कर देते है, जो भाप के इंजनों में पाम तौर पर इस्तेमाल होती है। ३३,००० पौण्ड वजन को एक मिनट में एक फुट ऊपर उठाने के लिए जो शक्ति भावश्यक होती है, वही यह इकाई है। फिर वह हिसाब लगाकर दिखाते है कि जब भाप के इंजन से एक प्रश्व-शक्ति ली जाती है, तो उसकी लागत ३ पेन्स प्रति घण्टा बैठती है, और जब वह घोड़े से ली जाती है, तो उसकी लागत पेन्स प्रति घण्टा होती है। इतना ही नहीं, यदि हम किसी घोड़े का स्वास्थ्य ठीक रखना चाहते है, तो हम उससे ८ घण्टे रोजाना से ज्यादा काम नहीं ले सकते। इसलिये, यदि भाप की शक्ति का उपयोग किया जाये, तो जमीन के जोतने-बोने में इस्तेमाल होने वाले हर सात घोड़ों में से कम से कम तीन घोड़ों के बिना ही काम चल सकता है। और भाप की शक्ति में पूरे एक साल में जो खर्च होगा, वह इन तीन घोड़ों के उन तीन या चार महीनों के वर्ष से ज्यादा नहीं होगा, जिनमें उनसे सक्रिय रूप से काम लिया जा सकता था। अन्त' में, खेती की जिन क्रियामों में भाप की शक्ति का उपयोग किया जा सकता है, उनमें उसके इस्तेमाल से प्रश्व-शक्ति की अपेक्षा काम का स्तर ऊंचा हो जाता है। एक भाप के इंजन का काम करने के लिये ६६ भादमियों की जरूरत होगी, जिनपर कुल १५ शिलिंग फी घण्टा वर्च होंगे, जब कि एक घोड़े का काम करने के लिये ३२ भादमियों की जरूरत होगी, जिनपर कुल ८ शिलिंग फ्री घण्टा बर्च होंगे। फोलहावेर, १६२५; दे कोष, १६८८ । .
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