पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४४६

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मशीनें और माधुनिक उद्योग 1 . . इस तरीके के स्थान पर मशीन से छपाई होने लगी है, वहां एक मशीन एक पुरुष या लड़के की मदद से एक घण्टे में चार रंगों की जितनी छोट छाप देती है, उतनी पहले कहीं २०० पादमी छाप पाते थे।' एलि व्हिटने मे cotton gin (कपास मोटने की मशीन) का पाविष्कार १७९३ में किया था। उसके पहले एक पौण्ड कपास के बिनौले अलग करने में प्रोसतन एक दिन का श्रम वर्ष हो जाता था। व्हिटने के माविष्कार के फलस्वरूप एक हबशी औरत रोवाना १०० पौग कपास प्रोटने लगी, और तब से अब तक cotton gin (कपास प्रोटने की मशीन) की कार्य-क्षमता बहुत बढ़ गयी है। पहले एक पौण कच्ची गई तैयार करने में ५० सेंट खर्च होते थे। इस प्राविष्कार के बाद उसमें पहले से अधिक प्रवेतन श्रम शामिल होने लगा, और इसलिए वह १० सेंट में बेची जाती थी और फिर भी उससे पहले से ज्यादा मुनाफा होता था। हिन्दुस्तान में गई को बिनालों से अलग करने के लिए चरखी इस्तेमाल की जाती है, जो पापी मशीन और भाषी प्रोबार होती है। उसकी मदद से एक प्रावमी और एक पौरत रोजाना २८ पौष कपास साफ़ कर सकते हैं। पर अभी कुछ बरस हुए ग. फोर्स ने जिस प्रकार की परती का प्राविष्कार किया है, उसकी मदद से एक पादमी और एक लड़का दिन भर में २५० पौड गई तैयार कर सकते हैं। यदि उसे चलाने के लिए बैल, भाप या पानी इस्तेमाल किया जाये, तो फिर उसमें कपास गलने के लिए ही चन्द लड़के-लड़कियों की बात होती है। इस तरह की सोलह मशीनें जब बैलों द्वारा चलायी जाती है, तो वे एक दिन में उतना काम करती हैं, जितना काम पहले ७५० भादमी करते थे।' जैसा कि पहले भी कहा चुका है, भाप से चलने वाला एक हल एक घन्टे में तीन पेंस की लागत पर जितना काम कर देता है, उतना काम पहले ६६ प्रावमी कर पाते थे, जिसमें १५ शिलिंग की लागत लगती थी। मैं एक गलत धारणा को दूर कर देने के उद्देश्य से इस उदाहरण को एक बार फिर ले रहा हूं। ६६ पादमी एक घन्टे में कुल जितना मम सर्च कर देते हैं, ये १५ शिलिंग मुद्रा के रूप में कदापि उस सब की अभिव्यंजना नहीं हैं। यदि मावश्यक श्रम के प्रति अतिरिक्त श्रम का अनुपात १०० प्रतिशत हो, तो ये ६६ पावनी एक घण्टे में ३० शिलिंग का मूल्य पैदा करेंगे, हालांकि उनकी मजदूरी, यानी १५ शिलिंग केवल पाषे घण्टे के भम का ही प्रतिनिधित्व करेंगे। अब मान लीजिये कि किसी मशीन की लागत उन १५० भादमियों की एक वर्ष की मजदूरी के बराबर है, जिनका वह स्थान ले लेती है, जैसे कि मान लीजिये कि उसकी लागत ३,००० पार है। ये ३,००० पोज उस मन की मुद्रा के रूप में अभिव्यंजना नहीं है, जो ये १५० पावनी इस मशीन का प्राविकार होने के पहले पैदावार में जोड़ देते थे, बल्कि ये तो उनके साल भर के श्रम के केवल उस भाग की मुद्रा के रूप में अभिव्यंजना है, जो खुद इन लोगों के ऊपर खर्च हुमा वा और जिसका प्रतिनिधित्व उनकी मजदूरी करती थी। दूसरी मोर, मशीन के मुद्रा मूल्य के रूप में ये ३,००० पौण उसके उत्पादन में खर्च किये गये समस्त भम को अभिव्यक्त करते हैं, और उसमें इससे कोई अन्तर - . मशीन की छपाई से रंग की भी बचत होती है। 'इस सम्बंध में हिन्दुस्तान की सरकार के पैदावारों के रिपोर्टर, ग. वाटसन ने १७ अप्रैल १८६० को धंधों की परिषद के सामने जो निबंध पढ़ा था, उसे (Paper, read by Dr. Watson, Reporter on Products to the Government of India, before the Society of Arts, 17th April, 1860) देखिये। .