पूंजीवादी उत्पादन . ५ में कमी हो जाने के फलस्वम्म पूंजीपति को उत्पादन के पर्व पर ज्यादा से ज्यादा कड़ी मबार रखनी पड़ती है। भाप के इंजन में वो सुधार हुए हैं, उनसे पिस्टन की रफ्तार बढ़ गयी है और साथ ही यह मुमकिन हो गया है कि उसी इंजन में पहले जितना या उससे भी कम कोयला बर्ष करते हुए पहले से अधिक संख्या में मशीनें चलायी जायें। यह शक्ति केस में पहले से अधिक मितव्ययितां बरतने के कारण सम्भव होता है। संचालक यंत्र में जो सुधार हुए हैं, उन्होंने पर्वक को कम कर दिया है, पौर-जो माधुनिक मशीनों और पुरानी मशीनों का सबसे उल्लेखनीय मेव है-इन सुधारों ने वि-संहति के व्यास और भार को घटाकर एक अल्पतम स्तर पर पहुंचा दिया है, जो अधिकाधिक कम होता जाता है। अन्तिम बात यह है कि कार्यकारी मशीनों में को सुधार हुए हैं, उन्होंने इन मशीनों के प्राकार को कम करने के साथ-साथ.उनकी रफ्तार तवा कार्य-ममता को बढ़ा दिया है, जैसा कि शक्ति से चलने वाले माधुनिक करणे में हमा है, या उनके डांचे के साकार को बढ़ाने के साथ-साथ उनके कार्यकारी पुत्रों की संख्या तथा विस्तार में भी वृद्धि कर दी है, जैसा कि कताई करने बाले म्यूलों में हुमा है; और. या उन्होंने इन कार्यकारी पुत्रों में ऐसी बारीक तबीलियां करके, बो दिलाई तक नहीं देती, उनकी रफ्तार बढ़ा दी है,-मिसाल के लिये, बस साल पहले self-acting miles (स्वचालित म्यूलों) में इसी तरह की तीलियों के फलस्वरूम सकुओं की रफ्तार में की वृद्धि हो गयी थी। इंगलैस में १८३२ में काम के दिन को घटाकर बारह घन्टे का किया गया था। १८३६ में एक कारखानेदार ने कहा: "तीस या चालीस बरस पहले की तुलना में... अब फ्रक्टरियों में.कहीं अधिक मम किया जाता है। इसका कारण यह है कि मशीनों की रफ्तार बहुत प्यारा बड़ा दी गयी है, और उसकी वजह से पब मजदूरों को पहले से कहीं अधिक ध्यान लगाकर कामं करना पड़ता है और अधिक प्रियाशीलता विलानी पड़ती है।"1 १४ में लाई ऐशले ने, जो अब चार चौपटेसबरी कहलाते हैं, हारत पाक कामन्स में निम्नलिखित बातें कहीं पी और उनके समर्थन में लिखित प्रमाण पेश किये : "प्रौद्योगिक प्रपियानों में लगे हुए लोग इन प्रक्रियाओं के शुरू के दिनों की अपेक्षा प्रावकल तीनगुना अधिक काम करते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि मशीनों ने ऐसा-ऐसा काम पूरा कर दिया है, जिसमें करोड़ों बनुष्यों की मांसपेशियों को लगना. पड़ता। किन्तु इसके साथ-साथ मशीनों में उन लोगों के भम को भी बहुत अधिक (prodigiously) बढ़ा दिया है, जो उनकी सरावनी हरकतों के तावे रहते हैं...दि १२.पण्डे के काम के दिन के अनुसार हिसाब लगाया पाये, तो १८२५ में ०४० के भूत की कताई करने वाले एक मोड़ी म्यूलों का अनुसरण करने में मील पैदल चलना पड़ता था। १८३२ में इसी नम्बर के सूत का पाना तैयार करने वाले एक मोड़ी म्यूनों का अनुसरण करने में २० मील और अक्सर उससे भी ज्यादा चलना मावश्यक हो गया था। १८२५ में कताई करने बाला मवर प्रत्येक मूल पर रोजाना १२० बार पागा तानता पा, पानी प्रत्येक दिन उसे कुल १,६४० बार पागा तानना पड़ता था। १८३२ में बह हर म्यूल पर २,२०० बार, यानी दिन भर में कुल ४,४०० बार, पागा तामतापा।१४ में उसे प्रत्येक म्यून पर २,४०० बार, पानी कुल ४,८०० पार, पागा तानना पड़ता है।
1 John Fielden, "The Curse of the Factory System" (ATAT SENT, 'फैक्टरी-व्यवस्था का अभिशाप'), London, 1836, पृ०३२। .