पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४७२

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मशीनें और माधुनिक उद्योग " वास्तविक अश्व-गापित की पोर केवल संकेत ही कर सकती है, उन्होंने मागे कहा: "मुझे इस बात का पूर्ण विश्वास है कि पहले ही जितने बदन की भाप के इंजन वाली मशीनों से पानकल हम पीसतन कम से कम ५० प्रतिशत अधिक काम ले रहे हैं और भाप के जिन इंजनों से २२० क्रीट प्रति मिनट की सीमित रफ्तार के दिनों में ५० अश्व-शक्ति मिल पाती पी, क उन्हीं इंजनों से बहुत सी जगहों में पानकल १०० प्रश्व-शक्ति से भी अधिक मिल जाती है १०० अश्व-शक्ति के भाप के माधुनिक इंजन को अब पहले से कहीं अधिक चोर के साथ चलाया जा सकता है। यह उसकी बनावट तथा बायलरों की बनावट और पारिता प्रावि से सम्बन्धित सुधारों का परिणाम है . " "यपि प्रश्व-शक्ति के अनुपात में अब भी पहने जितने मजदूरों से काम लिया जाता है, मशीनों के अनुपात में अब पहले से कम मजदूरों से काम लिया जाता है।"1"१८५० में ब्रिटेन की पटरियों में १,५६, ३८,७१६ तकुमओं और ३,०१,४५ करों में गति पैदा करने के लिये नाम मात्रकी १,३४,२१७ प्रश्व-शक्ति का उपयोग किया जाता था। १८५६ में तकुमों और करषों की संख्या क्रमशः ३,३५,०३,५८० और ३,६६,२०५ थी। यह मानकर कि नाम मात्र की एक प्रश्व-शक्ति में १८५६ में भी वही बल पा, जो १८५० म था, इतने तमों और करषों के लिये १,७५,००० प्रश्नों के बराबर शक्ति की भावश्यकता होती; परन्तु १८५६ के विवरण से पता चलता है कि असल में केवल १,६१,४३५ प्रश्व-शक्ति इस्तेमाल हुई थी। १८५० के विवरण के माधार पर हिसाब लगाते हुए १८५६ में कैक्टरियों को जितनी अश्व-शक्ति की पावश्यकता होनी चाहिये थी, यह उससे १०,००० अश्व-शक्ति कम थी। इस प्रकार, (१८५६ के) विवरण से जो तथ्य सामने पाते है, उनसे पता चलता है कि फैक्टरी-व्यवस्था तेजी के साथ बढ़ रही है। प्रश्व-शक्ति के अनुपात में यद्यपि अब भी पहले जितने ही मजदूरों से काम लिया जाता है, पर मशीनों के अनुपात में पहले से कम मजदूरों से काम लिया जाता है। और शक्ति का मितव्ययितापूर्ण प्रयोग तथा अन्य तरीकों के फलस्वरूप अब भाप के इंजन से पहले से अधिक भारी मशीनों को चलाया जा सकता है, और मशीनों में तथा उद्योग के तरीकों में सुधार करके, मशीनों की रफ्तार बढ़ाकर और तरह-तरह की अन्य तरकीबों से पहले से अधिक मात्रा में काम निकाला जा सकता है।" "हर प्रकार की मशीनों में वो बड़े-बड़े सुधार हो गये हैं, उनसे उनकी उत्पादक शक्ति बहुत बढ़ गयी है। इसमें सन्देह नहीं कि श्रम के घरों में कमी कर दिये जाने से . सुधारों को बढ़ावा मिला है। इन सुधारों का और साथ ही मजदूर को जो पहले से अधिक कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है, उसका यह परिणाम हुमा है कि पहले से छोटे (पहले से दो घण्टे कम या । छोटे) काम के दिन में अब कम से कम उतनी पैदावार बकर तैयार हो जाती है, जितनी पहले अधिक लम्बे काम के दिन में तैयार हुमा करती थी। 1 "Rep. of Insp. of Fact. for 31st October, 1856" ('$Te -siect * रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५६'), पृ. १३-१४, २०, और १८५२ की रिपोर्ट , पृ० २३ । 'उप० पु०, पृ. १४-१५। 'उप० पु०, पृ. २०॥ • "Reports, &c., for 31st October, 1858” ('रिपोर्ट, इत्यादि, ३१ अक्तूबर 9545'), go <-901 "Reports, &c., for 30th April, 1860" ('foute, sulfa, ३० अप्रैल १८६०'), पृ. ३० पौर भागे के पृष्ठों से तुलना कीजिये। "3 .