पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४९९

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४९६ पूंजीवादी उत्पादन . . . पान्तरण से कोई पूंजी मुक्त हो जाती है? परिवर्तन के पहले ६,००० पौण की कुल पूंजी का पाषा भाग स्थिर पूंजी का और भाषा अस्थिर पूंजी का था। परिवर्तन के बाद उसमें ४,५०० मौन स्थिर पूंजी के होते हैं (३,००० पौड कच्चे माल के और १,५०० पौण्ड मशीनों के) और १,५०० पौण अस्थिर पूंनी के। यानी अस्थिर पूंजी कुल पूंजी की भाषी होने के बजाय केवल चौपाई रह जाती है। पूंनी का मुक्त होना तो दूर रहा, यहाँ उल्टे उसका एक भाग इस तरह फंस जाता है कि उसका श्रम-शक्ति से विनिमय नहीं किया जा सकता। अस्थिर पूंजी स्थिर पूंजी में बदल जाती है। यदि अन्य बातें समान रहें, तो ६,००० पौण्ड की पूंजी भविष्य में ५० भादमियों से ज्यादा को नौकर नहीं रख पायेगी । मशीनों में होने वाले प्रत्येक सुधार के साथ वह पहले से कम मजदूरों को नौकर रखती है। यदि नयी मशीनों पर उतना खर्च नहीं होता, जितना उस श्रम-शक्ति तथा उन पौवारों पर होता था, जिनका इन नयी मशीनों ने स्थान ले लिया है, यदि, उदाहरण के लिये, १,५०० पौण के बजाय नयी मशीनों पर केवल १,००० पौड ही बर्ष होते हैं, तब १,००० पौण की अस्थिर पूंजी तो स्थिर पूंजी में बदल जायेगी और ५०० पौण की पूंजी मुक्त हो जायेगी। यदि यह मान लिया जाये कि मजदूरी में कोई तबदीली नहीं होती, तो यह दूसरी रकम इसके लिये काफी होगी कि जिन ५० मजदूरों को काम से जवाब मिल गया है, उनमें से लगभग १६ को फिर से नौकर रख लिया जाये। नहीं, बल्कि १६ से भी कम को ही नौकर रखा जा सकेगा, क्योंकि ५०० पौण्ड को इस रकम को पूंजी के रूप में इस्तेमाल होने के लिये इसके एक हिस्से को अब स्थिर पूंजी बन जाना होगा, और उसके बाद जो कुछ बचेगा, केवल वही श्रम-शक्ति पर खर्च किया जा सकेगा। लेकिन इसके अलावा यह भी मान लीजिये कि नयी मशीनें बनाने में पहले से अधिक यान्त्रिकों को नौकरी मिल जाती है। तब क्या यह कहा जा सकता है कि जिन कालीन बनाने वाले कारीगरों की रोसी छिन गयी है, इस तरह उनकी पति-पूर्ति हो जायेगी ? अधिक से अधिक अनुकूल परिस्थितियों में भी मशीनों के उपयोग से जितने मजदूरों को जवाब मिल जाता है, मशीन बनाने में उससे कम संख्या में ही मजदूरों को काम मिलता है। १,५०० पौण्ड की वह जो पहले कालीन बनाने वाले उन कारीगरों की मजदूरी का प्रतिनिधित्व करती थी, जिनको जवाब दे दिया गया है, अब मशीनों के रूप में इन चीजों का प्रतिनिधित्व करती है : (१) इन मशीनों को बनाने में इस्तेमाल किये गये उत्पादन के साधनों का मूल्य; (२) इनको बनाने में जिन यान्त्रिकों से काम लिया गया, उनकी मजबूरी, और (३) वह अतिरिक्त मूल्य, जो इन मजदूरों के "मालिक" के हिस्से में पड़ा। इसके अलावा, जब तक मशीनें एकदम पिस नहीं जाती, तब तक उनकी जगह पर नयी मशीनें लगाना जरूरी नहीं होता। इसलिये, मशीनें बनाने वाले मजदूरों की पहले से बढ़ी हुई संस्था के रोजगार को लगातार कायम रखने के लिये यह बरी है कि कालीन तैयार करने वाले एक पूंजीपति के बाद दूसरा पूंजीपति मजदूरों को जवाब देता जाये और उनकी जगह पर मशीनें लगाता जाये। असल में, इस व्यवस्था की वकालत करने वाले प्रशास्त्री बब पूंजी के मुक्त कर दिये जाने की चर्चा करते हैं, तब उनका यह मतलब नहीं होता। उनके दिमाग में, असल में, मजदूरों के जीवन-निर्वाह के मुक्त कर दिये गये साधन होते हैं। उपर्युक्त उदाहरण में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मशीनें न केवल ५० भादमियों को मुक्त कर देती है, जिनको अब दूसरे पूंजीपति इस्तेमाल कर सकते हैं, बल्कि इसके साथ-साथ १,५०० पोच के मूल्य के जीवन- निर्वाह के सापनों, को मजदूरों के उपभोग की परिधि के बाहर बीच लेती है और इस प्रकार . . .