५३६ पूंजीवादी उत्पादन . से स्यावा मशीनें बरी हो जाती है और मांस-पेशियों के स्थान पर चालक शक्ति के रूप में भाप का उपयोग करने की प्रावश्यकता पैसा जाती है। और, दूसरी तरफ, समय की मति को पूरा करने के उद्देश्य से उत्पादन के उन सापनों का विस्तार हो जाता है, जिनका सामूहिक अंग से इस्तेमाल किया जाता है, जैसे भट्ठियां, मकान मावि,-संक्षेप में कहा जाये, तो तब उत्पावन के साधनों का पहले से अधिक केनीकरण हो जाता है और उसके अनुरूप पहले से बड़ी संख्या में मजदूर इकट्ठा कर दिये जाते हैं। जब कभी किसी हस्तनिर्माण पर पटरी-कानून लागू होने का खतरा पैदा होता है, तब उसकी ओर से वारपार और बड़े चोरों के साथ खास एतराब असल में यह किया जाता है कि पटरी-कानून लागू हो जाने के बाद पुराने पैमाने पर पंषा करने के लिये पहले से ज्यादा पूंजी लगानी पड़ेगी। लेकिन वहां तक तवाकवित रेलू उद्योगों और उनके तवा हस्त के बीच पाये जाने वाले अन्तकालीन रूपों का सम्बंध है, वैसे ही काम के दिन पर और बच्चों को नौकर रखने पर सीमाएं लगा दी जाती है, वैसे ही ये उद्योग चौपट हो जाते हैं। प्रतियोगिता में केवल उसी समय तक बड़े रह सकते हैं, बब तक कि उनको सस्ती श्रम-क्ति का निर्वाध शोषण करने का अधिकार प्राप्त होता है। क्रैक्टरी-व्यवस्था के अस्तित्व के लिये वो बातें अत्यन्त मावश्यक है, उनमें से एक यह है कि फन पहले से निश्चित होना चाहिये, अर्थात् यह मालूम होना चाहिये कि इतने समय में मानों की इतनी मात्रा तैयार हो जायेगी या अमुक उपयोगी प्रभाव पैदा हो सकेगा। वहाँ काम के दिन की लम्बाई पहले से निश्चित होती है, वहां यह शतं खास तौर पर बरी हो जाती है। इसके अलावा, कानून के अनुसार क्योंकि काम के दिन को बीच-बीच में रोक देना जरूरी होता है, इसलिये पहले से ही यह मान लिया जाता है कि काम को समय-समय पर यकायक बीच में रोक देने से उस वस्तु को कोई हानि नहीं पहुंचेगी, बो उत्पादन की मिया में से गुजर रही है। बाहिर है, उन उद्योगों की अपेक्षा,जिनमें रासायनिक एवं भौतिक पियानों का भी भाग होता है, विशुद्ध रूप से यांत्रिक उद्योगों में फल प्रषिक निश्चित रहता है और काम को बीच में रोक देना अधिक सहन होता है। मिसाल के लिये, मिट्टी के बर्तनों के बंधे, कपड़े सफर करने के व्यवसाप, रोटी पकाने में और पातु के अधिकतर उद्योगों में चूंकि रासा- यनिक एवं भौतिक पियानों का भी प्रयोग किया जाता है, इसलिये उनमें काम का फल उतना निश्चित नहीं होता और न ही उनमें काम को उतनी पासानी से बीच में रोका जा सकता है। वहाँ कहीं काम के दिन की लम्बाई पर कोई सीमा नहीं लगी होती, वहां कहीं रात को काम 1 मिसाल के लिये, मिट्टी के बर्तनों के व्यवसाय में, ग्लासगो की Britain Pottery के मालिक, मैसर्स कोकेन ने बताया था कि "उत्पादन की मात्रा को बनाये रखने के लिये हम अब बड़े पैमाने पर उन मशीनों का प्रयोग करने लगे हैं, जिनपर प्रनिपुण मजदूर काम करते हैं। और दिन प्रति दिन हमारा यह विश्वास बढ़ता जाता है कि पुरानी पद्धति की अपेक्षा इस तरह हम अधिक मात्रा में उत्पादन कर सकते हैं।" ("Rep. of Insp. of Fact, 31st Oct., 1865" ["फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६५'], पृ० १३) "फैक्टरी-कानूनों का असर यह हुमा है कि मशीनों का प्रयोग और भी बढ़ा देना पड़ा है।" (उप० पु०, पृ० १३-१४।) 'चुनांचे, मिट्टी के बर्तनों के व्यवसाय पर फैक्टरी-कानून के लागू हो जाने के बाद hand- moved jiggers (हाथ की छमनियों) के स्थान पर power-jiggers (शक्ति से चलने वाली छलनियों) की संख्या में भारी वृद्धि हो गयी है।
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