माल ५१ रूप में सामने पाता है, जिस अनुपात में एक प्रकार के उपयोग-मूल्यों का दूसरे प्रकार के उपयोग मूल्यों से विनिमय होता है। यह सम्बंध समय और स्थान के अनुसार लगातार बदलता रहता है। इसलिए विनिमय मूल्य एक पाकस्मिक और सर्वचा सापेक चीच मालूम होता है, पौर चुनांचे स्वाभाविक मूल्य, अर्थात् ऐसा विनिमय-मूल्य, नो मालों से अभिन्न रूप से जुड़ा हो, बो मालों में निहित हो, ऐसा स्वाभाविक मूल्य स्वतःविरोषी जैसा मालूम होता है। इस मामले पर थोड़ा और गहरा विचार करना चाहिए। मान लीजिये, एक माल-मिसाल के लिये, एक क्वार्टर गेहूं-है, जिस का 'क' बूट- पालिश, 'ब' रेशम और 'ग' सोने मादि से विनिमय होता है। संक्षेप में यह कहिये कि उसका दूसरे मालों से बहुत ही भिन्न-भिन्न अनुपातों में विनिमय होता है। इसलिए गेहूं का एक विनिमय-मूल्य होने के बजाय उसके कई विनिमय-मूल्य होते हैं। लेकिन चूंकि 'क' बूट-पालिश, 'ब' रेशम या 'ग' सोने प्रावि में से प्रत्येक एक क्वार्टर गेहूं के विनिमय-मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए विनिमय मूल्यों के रूप में 'क' बूट-पालिश, 'ख' रेशम या 'ग' सोने प्राधि में एक दूसरे का स्थान लेने की योग्यता होनी चाहिए, यानी वे सब एक दूसरे के बराबर होने चाहिए। इसलिए पहली बात तो यह निकली कि किसी एक माल के मान्य विनिमय-मूल्य किसी समान वस्तु को व्यक्त करते हैं, और दूसरी यह कि विनिमय-मूल्य पाम तौर पर किसी ऐसी वस्तु को व्यक्त करने का ढंग अथवा किसी ऐसी वस्तु का इनियगम्य म मात्र है, को उसमें निहित होती है और फिर भी जिस रूप और विनिमय-मूल्य में भेव किया था सकता है। वो माल लीजिये, मिसाल के लिए मनान और लोहा। जिन अनुपातों में उनका विनिमय किया जा सकता है, वे अनुपात चाहे जो हों, उनको सवा ऐसे समीकरण के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है, जिसमें अनाज की एक निश्चित मात्रा का लोहे की किसी मात्रा के साप समीकरण किया जाता है : मिसाल के लिए, १ क्वार्टर अनाज = 'क'हरेग्वेट लोहा। यह समीकरण हमें क्या बतलाता है? वह हमें यह बतलाता है कि दो अलग-अलग चीजों में-१ क्वार्टर मनाज और 'क' हंडेग्वेट लोहे में-कोई ऐसी चीज पायी जाती है जो बोनों में समान मात्रामों में मौजूद है। इसलिए इन दो चीजों को एक तीसरी चीन के बराबर होना चाहिए, जो खुद , 1 “La valeur consiste dans le rapport d'échange qui se trouve entre telle chose et telle autre, entre telle mesure d'une production, et telle mesure d'une autre.” ["मूल्य इस बात में निहित होता है कि किसी चीज का दूसरी चीज से, एक पैदावार की एक निश्चित मात्रा का किसी दूसरी पैदावार की एक निश्चित मात्रा से किस अनुपात में fafanua El I") (Le Trosne: “De l'Intérét Social.” Physiocrates, Daire time, Paris, 1846, go 5581) ३" स्वाभाविक मूल्य किसी चीज में नहीं हो सकता (N. Barbon, उप० पु०, पृ. ६) या, जैसा कि बटलर ने कहा है: "The value of a thing is just as much as it will bring.” ("मूल्य वस्तु का उतना ही है, जितना वह बदले में पाये।") 40
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