पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मशीनें और माधुनिक उद्योग ५६६ . . बेहाती पावावी न केवल तुलनात्मक, बल्कि निरपेन दृष्टि से भी घट गयी है। संयुक्त राज्य अमरीका में अभी तक केवल प्रभावतः ही खेती की मशीनें मजदूरों का स्थान ले लेती हैं। दूसरे शब्दों में, उनकी मदद से किसान पहले से बड़े रकबे में खेती कर सकता है, लेकिन उनकी वजह से पहले से काम करने वाले मजदूरों को जवाब नहीं मिल जाता।१८६१ में इंगलैण और वेल्स में खेती की मशीनों के बनाने में लगे हुए व्यक्तियों की संख्या १,०३४ पी, जब किती की मशीनों और भाप के इंजनों का इस्तेमाल करने वाले खेतिहर मजदूरों की संख्या १,२०५ से अधिक नहीं थी। खेती के क्षेत्र पर माधुनिक उद्योग का पैसा क्रान्तिकारी प्रभाव पड़ता है, वैसा और कहीं नहीं पड़ता। उसका कारण यह है कि प्राधुनिक उद्योग पुराने समाज के प्राधार स्तम्भ- यानी किसान-को नष्ट कर देता है और उसके स्थान पर मजदूरी लेकर काम करने वाले मजदूर को स्थापित करता है। इस प्रकार, सामाजिक परिवर्तनों की चाह और वर्गों के विरोष गांवों में भी शहरों के स्तर पर पहुंच गये हैं। खेती के पुराने, अविवेकपूर्ण तरीकों के स्थान पर बंज्ञानिक तरीके इस्तेमाल होने लगते हैं। सती पौर हस्तनिर्माण के शिव-काल में जिस नाते ने इन दोनों को साथ बांध रखा था, पूंजीवादी उत्पादन उसे एकदम तोड़कर फेंक देता है। परन्तु इसके साथ-साथ वह भविष्य में सम्पन्न होने वाले एक अधिक ऊंचे समन्वय-यानी अपने प्रस्थायी अलगाव के दौरान में प्रत्येक ने यो प्रषिक पूर्णता प्राप्त की है, उसके प्राधार पर कृषि और उद्योग के मिलाप-के लिये भौतिक परिस्थितियां भी तैयार कर देता है। पूंजीवादी उत्पादन प्राबादी को बड़े-बड़े केनों में केन्द्रीभूत करके और शहरी ग्राबादी का पलड़ा अधिका- धिक भारी बनाकर एक पोर तो समाज की ऐतिहासिक बालक शक्ति का केन्द्रीकरण कर देता है, और, दूसरी पोर, वह मनुष्य तवा परती के बीच पदार्थ के परिचलन को प्रस्त-व्यस्त कर देता है, अर्थात् भोजन-कपड़े केस में मनुष्य धरती के जिन तत्वों को खर्च कर गलता है, उन्हें धरती में लौटने से रोक देता है, और इसलिये वह उन शर्तों का उल्लंघन करता है, जो धरती को सदा उपजाऊ बनाने के लिये मावश्यक है। इस तरह वह शहरी मखदूर के स्वास्थ्य को और बेहाती महबूर के बौखिक जीवन को एक साथ चौपट कर देता है। परन्तु पदार्थ के इस परिचलन के लिये जो परिस्थितियां खुद पर तैयार हो गयी थीं, उनको प्रस्त- व्यस्त करने के साथ-साप पूंजीवादी उत्पादन बड़ी शान के साथ इस बात का तकावा करता है कि इस परिचलन को एक व्यवस्था के रूप में, सामाजिक उत्पादन के एक नियामक कानून के रूप में, और एक ऐसी शकल में पुनः कायम किया जाये , जो मानव-जाति के पूर्ण विकास के लिये उपयुक्त हो। हस्तनिर्माण की तरह खेती में भी उत्पादन के मान्तरण और पूंजी के माधिपत्य की स्थापना का पर्व साथ ही यह भी होता है कि उत्पावक की हत्या हो जाती है। 1 " 'पाप लोगों ने कौम को प्रसभ्य भांडों और बौने हिजड़ों के दो विरोधी पक्षों में बांट दिया है। हे भगवान! एक राष्ट्र बेतिहर और व्यापारिक हितों में बंटा हुआ है और फिर भी अपने होश-हवास दुरुस्त बताता है। नहीं, बल्कि जाग्रत और सभ्य होने का दावा करता है और कहता है कि न सिर्फ इस बेहूदा और अस्वाभाविक विभाजन के बावजूद ऐसा है, बल्कि यह इस विभाजन का ही परिणाम है।" (David Urquhart, उप. पु., पृ० ११६।) इस उबरण से उस प्रकार की मालोचना की शक्ति और कमजोरी दोनों एक साथ प्रकट हो जाती है, जो वर्तमान को प्रांककर उसकी निन्दा करना तो जानती है, पर उसको समझ नहीं मकती। .