कार्यानुसार मजदूरी ६२१ जाता है। करार में दो बाम से होता है, उसके एवज में मेट र भवदूरों को नौकर रखता है और उनकी मजदूरी देता है। यहां पूंजी द्वारा श्रम का शोषण मजदूर द्वारा मजदूर के शोषण से सम्पन्न होता है। कार्यानुसार मजदूरी की प्रणाली में स्वभावतया यह बात खुब मजदूर के व्यक्तिगत हित में होती है कि वह अपनी भम-शक्ति से ज्यादा से ज्यादा बोर लगाकर काम ले। इससे पूंजीपति को श्रम की सामान्य तीव्रता को बहुत प्रासानी से बढ़ाने में मदद मिलती है। इसके अलावा, काम के दिन की लम्बाई को बढ़ाना भी मजदूर के व्यक्तिगत हित में होता है, क्योंकि उसके साथ-साथ उसकी रैनिक या साप्ताहिक मजबूरी बढ़ती जाती है। इसकी धीरे-धीरे इसी प्रकार जाता 1 वर्तमान व्यवस्था के वकील वाट्स तक ने यह लिखा है : “ कार्यानुसार मजदूरी की प्रणाली में बड़ा सुधार हो जाये, यदि एक काम में लगे हुए सभी मजदूरों में से प्रत्येक को उसकी योग्यता के अनुसार करार में साझीदार बना दिया जाये और मौजूदा तरीका ख़तम हो जाये , जिसमें एक प्रादमी अपने निजी लाभ के वास्ते अपने सहयोगियों से कमर-तोड़ काम लेता है।" ( उप. पु., पृ. ५३।) इस प्रणाली की किल्लत के बारे में देखिये “Child. Emp. Com. Rep. III" ('बाल-सेवायोजन आयोग की तीसरी रिपोर्ट'), पृ० ६६, अंक २२; पृ० ११, अंक १२४; पृ. XI (ग्यारह), अंक १३, ५३, ५६, इत्यादि । 'यह बात स्वयंस्फूर्त ढंग से तो होती ही है, उसको बनावटी ढंग से भी बढ़ावा दिया जाता है। मिसाल के लिये, लन्दन के इंजीनियरिंग के व्यवसाय में बहुधा यह तरकीब काम में लायी जाती है कि “मोरों से ज्यादा शारीरिक बल तथा फुर्ती वाले एक पादमी को कई मजदूरों के मुखिया के रूप में छांट लिया जाता है और सामान्य मजदूरी के अलावा उसे हर तीन महीने या किसी दूसरी अवधि के बाद अतिरिक्त मजदूरी देकर इसके लिये राजी कर लिया कि वह ज्यादा से ज्यादा सख्त मेहनत करेगा, ताकि साधारण मजदूरी पाने वाले वाक़ी मजदूर भी उसके बराबर काम करने की कोशिश करें हम इसपर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करते। पर इससे यह बात काफ़ी साफ़ हो जानी चाहिये कि मालिक ट्रेड-यूनियनों के खिलाफ़ अक्सर इस तरह की जो शिकायतें किया करते हैं कि वे मजदूरों को लगन के साथ काम नहीं करने देते और अपनी पूरी निपुणता और कार्यक्षमता का प्रयोग नहीं करने देते (“stinting the action superior skill and working-power"), galt fts were i PUT चीज होती है।" (Dunning, उप० पु०, पृ. २२, २३ ।) इसका लेखक चूंकि खुद एक मजदूर और एक देर-यूनियन का सेक्रेटरी है, इसलिये समझा जा सकता है कि उसकी बात में कुछ अतिशयोक्ति होगी। परन्तु पाठक इसकी जे० सी० मोर्टन की 'highly respectable' ('प्रत्यन्त प्रतिष्ठित') रचना 'बेती का विश्वकोष' के "Labourer" ('मजदूर') शीर्षक लेख से तुलना करके देख सकते है, जहां किसानों को इस प्रणाली का जांची-परखी प्रणाली के रूप में उपयोग करने की सलाह दी गयी है। "जिनको कार्यानुसार मजदूरी मिलती है, उन सब को . काम की कानूनी सीमानों का प्रतिक्रमण करने में फायदा रहता है। जिन पौरतों से. बुनकरों और अटेरने वालों का काम लिया जाता है। ये खास तौर पर भोवरटाइम काम करने के लिये तैयार रहती है ।" ("Rept. of Insp. of · Fact., Soth April, 1858" ['फेक्टरी-इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३० अप्रैल १८५८'], पृ. ६।) "इस प्रणाली से (कार्यानुसार मजदूरी की प्रणाली से ) मालिक को
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