अतिरिक्त मूल्य का पूंजी में रूपान्तरण .. . . . १७९५ में प्रकाशित एक रचना में ग. पाइकिम ने लिखा है: "मानचेस्टर के व्यवसाय के इतिहास को चार कालों में बांटा जा सकता है। पहला काल वह वा, सब कारखानेदारों को अपनी बीविका कमाने के लिये कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी।"वे लोग अपना धन बढ़ाने के लिये मुख्यतया उन मां-बापों को लूटा करते थे, जिनके बच्चे उनके यहां काम सीखते थे। मां- बाप काम सीखने की ऊंची फील देते थे, जब कि सीततर बच्चे भूखों मरते थे। दूसरी मोर, मुनाफा प्रोसतन कम होता था और संचय करने के लिये हर वर्ष की कृपणता बरतनी पड़ती थी। ये कारखानेदार कंजूसों की तरह रहते थे और अपनी पूंजी का पूरा सूर तक भी खर्च नहीं करते थे। "दूसरा काल वह है, जब कारखानेदार पोड़ा धन बटोरने में तो कामयाब हो जाते थे, पर मेहनत अब भी उतनी ही सन्त करते थे,"-क्योंकि, जैसा कि बासों से काम लेने पाला हर पादमी अच्छी तरह जानता है, श्रम का प्रत्यक्ष शोषण करने में काफी श्रम खर्च होता है,-"पौर पहले जैसा ही सादा जीवन बिताते थे...तीसरा काल वह है, जब भोग-विलास शुरू हो गया और व्यवसाय को तेज करने के लिये राज्य के प्रत्येक ऐसे नगर में, जहाँ मनी लगती थी, हरकारे भेजकर माल के पार मंगवाये जाने लगे... यह सम्भव है कि १६६० के पहले यहां ३,००० पौण या ४,००० पौस की ऐसी बहुत कम पूंजियां थीं या बिल्कुल नहीं थी, जो व्यवसाय के द्वारा अर्जित की गयी हों। किन्तु १६९० के लगभग या उसके घोड़े बाद की बात है कि व्यवसाइयों के पास काफी रुपये मा गये और वे लकड़ी और पलस्तर के मकानों के स्थान पर ईटों के माधुनिक मकान बनवाने लगे थे।" यहाँ तक कि १८ वीं सदी के शुरू के हिस्से में भी, अगर मानचेस्टर का कोई कारखानेदार अपने मेहमानों के सामने थोड़ी सी विदेशी शराब भी खोलकर रख देता था, तो उसके सारे पड़ोसी उंगली उठाने और कानाफूसी करने लगते थे। मशीनों के अन्याय के पहले शाम को शराबजाने में, जहां कारखानेदार इकट्ठा हुमा करते थे, किसी कारखानेदार का खर्चा एक गिलास शराब के लिये छः पेन्स और तम्बाकू के लिये पेनी से ज्यादा नहीं बैठता था। १७५८ के पहले-और उसके पाते-पाते एक पूरा युग बीत चुका पा-सचमुच व्यवसाय में लगा हुमा कोई व्यक्ति खुद अपनी घोड़ा-गाड़ी के साथ कभी नहीं दिखाई देता था। "चौबा काल,"-यानी १८ वीं सदी के अन्तिम ३० वर्ष,-"वह है, जिसमें सर्च और भोग-विलास बहुत बढ़ जाते हैं, और व्यवसाय के सहारे चलते हैं, जिसे इस बीच हरकारों और प्राकृतियों के परिये योरप के हरेक हिस्से में फैला दिया गया था। यदि ग० माइकिन अपनी कब से उठकर माजकल के मानचेस्टर को देख पाते, तो वह क्या . . "1 कहते? . संचय करो, संचय करो! पूंजीपति के लिये तो मूसा का और बाकी तमाम पैगम्बरों का बस यही संदेश है। "उद्योग वही सामग्री देता है, जिसका बचत संचय कर देती है। इसलिये, बचत करो, बचत करो, अर्थात् अतिरिक्त मूल्य या अतिरिक्त पैदावार के अधिक से अधिक बड़े हिस्से को पूंजी में बदल गलो। संचय के लिये संचय करो! उत्पादन के लिये उत्पादन करो! - इस सूत्र के द्वारा प्रामाणिक प्रशासन ने पूंजीपति-वर्ग की ऐतिहासिक भूमिका को 1 Dr. Aikin, "Description of the Country from 30 to 40 miles round Manchester" (ग. पाइकिन, 'मानचेस्टर के ३०-४० मील के इर्द-गिर्द के देहात का वर्णन'), London, 1795, पृ० १५२ और उसके मागे के पृष्ठ । A. Smith, उप० पु., पुस्तक ३, अध्याय ३।
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