पूंजीवादी उत्पादन साथ-साथ केवल विस्तार में ही बढ़ता है। पूंजी के प्रजाजनों की प्रतिरिक्त पैदावार बराबर बढ़ती जाती है और लगातार अतिरिक्त पूंजी में रूपान्तरित होती रहती है। परन्तु उसका एक अपेक्षाकृत बड़ा भाग भुगतान के साधनों की शकल में खुद उन्हीं के पास लौट पाता है, जिससे वे अपने भोग और मानन्द के क्षेत्र का विस्तार कर सकते हैं, कपड़ों, फर्नीचर मावि के अपने उपभोग- कोष में कुछ वृद्धि कर सकते हैं और कुछ मुद्रा प्रारक्षित कोष के रूप में बचा सकते हैं। परन्तु जिस प्रकार यदि बास को पहले से कुछ अच्छा कपड़ा, भोजन प्रावि मिलने लगता है और उसके साब मालिक के बरताव में कुछ सुधार हो जाता है तथा उसके पास कुछ अधिक सम्पत्ति (pecullum) हो जाती है, तो उससे बास का शोषण समाप्त नहीं हो जाता, उसी प्रकार इन बातों से मजदूर का शोषण खतम नहीं होता। पूंजी के संचय के फलस्वरूप श्रम के दाम में जो वृद्धि हो जाती . की परिकल्पना के मूर्त रूप थे।" बिशप महोदय भागबबूला होकर चिल्ला उठते हैं : “ श्रीमान , क्या मापने यह कोई सही काम किया है कि एक ऐसे व्यक्ति के चरित्र तथा प्राचरण को 'पूर्णतया बुद्धिमान एवं सदाचारी' व्यक्ति के चरित्र एवं प्राचरण के रूप में हमारे सामने पेश किया है, जिसको लगता है, जैसे उन तमाम बातों से चिढ़ थी जिनको हम धर्म कहते हैं, जिसमें इस चिढ़ ने एक असाध्य रोग का रूप धारण कर लिया था, और जिसने मनुष्यों के हृदय में धर्म की भावना को दबाने , कुचलने और जड़ से मिटा देने के लिये अपनी एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था, और जिसका यदि बस चलता, तो लोग धर्म का नाम तक भूल जाते?" ( उप० पु०,१०८) "परन्तु सत्य के प्रेमियों को हतोत्साहित नहीं होना चाहिये। मनीश्वरवाद बहुत दिनों तक जिन्दा नहीं रह सकता" (पृ. १७) । ऐडम स्मिथ “के मन में इतना घोर पाप ("the atrocious wickedness") भरा हुआ था कि उन्होंने सारे देश में अनीश्वरवाद का प्रचार किया (मिसाल के लिये "Theory of Moral Sentiments" [ नैतिक भावनाओं का सिद्धान्त'] का उल्लेख किया जा सकता है ) । मोटे तौर पर, डाक्टर, पापका उद्देश्य अच्छा है, परन्तु मैं समझता हूं, इस बार आपको सफलता नहीं मिलेगी। भाप श्री डेविड राम का उदाहरण देकर हमें यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि निराशा की एकमात्र दवा ("cordial") और मृत्यु-भय का सही इलाज अनीश्वरवाद है ... भापको चाहिये कि बाबुल के ध्वंसावशेषों को देखकर मुसकराया करें और सख्तजान फ़िरमोन को लाल सागर तक पहुंचने के लिये बधाई दें" (उप० पु०, पृ. २१, २२)। ऐडम स्मिथ के कालिज के दिनों के एक परम्परानिष्ठ मित्र ने उनकी मृत्यु के बाद लिखा है : “स्मिथ के हृदय में राम के लिये बड़ा स्नेह था और राम इसके पात्र भी थे... परन्तु इस स्नेह ने उनको ईसाई नहीं रहने दिया ऐडम स्मिय जब कभी किन्हीं ऐसे ईमानदार व्यक्तियों से मिलते थे, जो उनको अच्छे लगते थे, .. तो वे लगभग जो कुछ भी कहते थे, वह उसपर तुरन्त विश्वास कर लेते थे। यदि वह सुयोग्य एवं चतुर होरोक्स के मित्र होते, तो वह इस बात पर भी विश्वास कर लेते कि आकाश में मेघों का एक टुकड़ा न होने पर भी चन्द्रमा कभी-कभी मांखों से मोझल हो जाता है ... अपने राजनीतिक सिद्धान्तों में वह प्रजातंत्रवाद के निकट पहुंच गये थे" ("The Bee". By James Anderson ['मधुमक्खी'। जेम्स ऐण्डर्सन द्वारा लिखित], १८ खण्ड, Edinburgh, 1791-93; तीसरा बण्ड, पृ० १६६, १६५) । पादरी टोमस चाल्मर्स को सन्देह है कि ऐडम स्मिथ ने "अनुत्पादक मजदूरों की कोटि का केवल प्रोटेस्टेंट पादरियों के लिये प्राविष्कार किया था, हालांकि वे परमात्मा के बगीचे में बड़े सवाब का काम करते हैं।
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