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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७७८

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पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७७५ उनके लिये एक प्राकृतिक नियम बन जाता है। दूसरी पोर, बेहात में लगातार "सापेक्ष प्रतिरिक्त मन-संख्या" रहने के बावजूद, समीन के लिये हमेशा भावादी की कमी रहती है। यह बात स्थानीय म से न केवल उन्हीं जगहों में देखने में माती है, जहां के बहुत अधिक लोग शहरों में, सानों में या जहां रेल की लाइनें बिछायी जा रही है, मावि-माविस्थानों पर काम करने चले गये हैं। यह बात हर जगह देखने को मिलती है, फसल के समय पौर बसन्त तथा गरमियों में भी, -पौर सो भी बार-बार,-जब इंगलैड की इतनी सुव्यवस्थित तवा गहन खेती को अतिरिक्त मजदूरों की पावश्यकता होती है। भूमि की जुताई पवाई की साधारण मावश्यकताओं की दृष्टि से सदा मजदूरों की बहुतायत तथा उसकी प्रसाधारण अपवा अस्थायी प्रावश्यकताओं को दृष्टि से हमेशा मजदूरों की कमी रहती है। इसीलिये सरकारी कागजों में हमें एक ही जगह पर मजदूरों की कमी 48 रहना काफ़ी की बात है। मैं चारों ओर नजर दौड़ाता हूं, लेकिन अपने मकान के सिवा मुझे कहीं एक भी घर नजर नहीं पाता । मानो में दुर्ग में रहने वाला देव हूं और अपने तमाम पड़ोसियों को हड़प गया हूं। फ्रांस में भी पिछले १० वर्षों से कुछ इसी तरह की चीज दिखाई दे रही है। वहां जिस अनुपात में पूंजीवादी उत्पादन खेती पर अधिकार करता जाता है, उसी अनुपात में वह 'पतिरिक्त" खेतिहर आबादी को गांवों से शहरों में खदेड़ता जाता है। वहां भी रहने के घरों के मामले में तथा अन्य बातों में मजदूरों की हालत बिगड़ने का मूल कारण अतिरिक्त जन-संख्या में ही दिखाई देता है । जमीन के इस तरह छोटे-छोटे टुकड़े कर देने से फ्रांस में जो विशेष ढंग का "prolétariat foncier" ("देहाती सर्वहारा") पैदा हो गया है, उसके बारे में अन्य पुस्तकों के अलावा पहले उद्धृत की गयी कोलिन्स (Colins) की रचना "LEco- nomie Politique" atc pri Hraf TTT “Der Achtzehnte Brumaire des Louis Bonaparte" (दूसरा संस्करण, Hamburg, 1869, पृ० ५६, इत्यादि ) का अवलोकन कीजिये। १८४६ में फ्रांस की शहरी आबादी कुल मावादी की २४.४२ प्रतिशत और खेतिहर पाबादी ७५.५८ प्रतिशत थी ; १८६१ तक शहरी भाबादी २८.८६ प्रतिशत हो गयी और खेतिहर प्राबादी ७१.१४ प्रतिशत रह गयी। पिछले पांच वर्षों में खेतिहर आबादी और भी कम हो गयी है। पियेर यूपोंत ने १८४६ में ही अपनी "Ouoriers" ("रचनाएं") में यह कहा था : Mal vétus, logés dans des trous, Sous les combles, dans les décombres, Nous vivons avec les hiboux Et les larrons, amis des ombres. (गंदे नाले से सटे हुए, कूड़े-कचरे के ढेर बीच, अंधियारे के प्रेमी उलूक रहते हैं सुख से चोर नीच जिस जगह, वहीं हम दुखियारे! मैले-गंदे चिपड़े धारे! टूटे-फूटे से दरवों में रहते है सारे के सारे!) -