माल ७७ - केवल एक ही अन्य माल के रूप में व्यक्त होता है। परन्तु यह एक माल कोट, लोहा, अनाज या और किसी भी तरह का माल हो सकता है। इसलिये एक ही माल के मूल्य को अनेक प्रापमिक अभिव्यंजनाएं हो सकती हैं। यह केवल इसपर निर्भर करता है कि उसका किस माल के साथ मूल्य का सम्बंध स्थापित किया गया है। उसकी समस्त सम्भव अभिव्यंजनाओं की संख्या केवल इस बात से सीमित होती है कि उस माल से भिन्न कितने प्रकार के माल हैं। 'क' के मूल्य की एक अकेली अभिव्यंजना को उस मूल्य को अनेक अलग-अलग प्राथमिक अभिव्यंजनाबों के एक पूरे क्रम में परिवर्तित किया जा सकता है, और इस क्रम को किसी भी सीमा तक लम्बा किया जा सकता है। प्रतएव, ख) मूल्य का सम्पूर्ण अथवा विस्तारित रूप 'क माल की 'प' मात्रा = 'ख' माल की 'फ' मात्रा, या = 'ग' माल की 'ब' मात्रा या ='घ' माल की 'म' मात्रा, या ='च' माल की 'य' मात्रा, या इत्यादि। 1, . (२० गत कपड़ा = १ कोट, या= १० पाँउ चाय, या= ४० पौंड कहवा, या --- १ क्वार्टर अनाज, या = २ प्रॉस सोना, या = १/२ टन लोहा, या = इत्यादि।) - १) मूल्य का विस्तारित सापेक्ष स्प किसी भी माल का- उदाहरण के लिये, कपड़े का- मूल्य अब मालों की दुनिया के अन्य असंख्य तत्त्वों के रूप में व्यक्त होता है। दूसरा हर माल अब कपड़े के मूल्य का वर्पण बन जाता है। इस प्रकार, यह मूल्य पहली बार अपने सच्चे रूप में-प्रात् अभिन्नित मानव-श्रम . 2 - . 1 उदाहरण के लिये, होमर की रचनाओं में एक वस्तु का मूल्य बहुत सी भिन्न-भिन्न वस्तुओं के रूप में व्यक्त किया गया है। इस कारण, जब कपड़े का मूल्य कोटों के रूप में व्यक्त किया जाता है, तब हम कपड़े के कोट-मूल्य की चर्चा कर सकते हैं ; जब वह अनाज के रूप में व्यक्त किया जाता है, तब हम उसके अनाज-मूल्य की चर्चा कर सकते हैं, और इसी तरह यह सिलसिला जारी रह सकता है। इस प्रकार की प्रत्येक अभिव्यक्ति हमें यह बताती है कि कोट , अनाज आदि प्रत्येक उपयोग- मूल्य के रूप में जो कुछ प्रकट होता है, वह कपड़े का मूल्य है। “विनिमय द्वारा अपने सम्बंध को व्यक्त करने वाले किसी भी माल के मूल्य को हम... जिस माल के साथ भी उसका मुक़ा- बला किया जाये , उसके अनुसार अनाज-मूल्य , कपड़ा-मूल्य आदि कह सकते हैं ; और , इस तरह , भिन्न-भिन्न प्रकार के हजारों मूल्य होते हैं ; दुनिया में जितने प्रकार के माल मौजूद हैं, उतने ही प्रकार के मूल्य भी होते हैं, और वे सब समान रूप से वास्तविक और समान रूप से बराय नाम होते हैं।" " ("A Critical Dissertation on the Nature. Measures and Causes of Value: chiefly. in reference to the writings of Mr. Ricardo and his followers". By the author of “Essays on the Formation, &c. of Opinions.” If you fit solat, माप और कारणों के विषय में एक मालोचनात्मक प्रबंध- मुख्यतया मि० रिकार्गे -
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