जिन लोगों की सम्पत्ति छीन ली गयी, उनके खिलाफ खूनी कानूनों का बनाया जाना ८२३ . . दूसरी ओर, इन लोगों को उनके जीवन के परम्परागत ढंग से यकायक अलग कर दिया गया और यह मुमकिन न था कि उनके नये डंग के जीवन के लिये पावश्यक अनुशासन भी उनमें उतने ही यकायक ढंग से पैदा हो जाता। चुनाचे इन लोगों की एक विशाल संख्या मिलारियों, गमों और भावारा लोगों में बदल गयी। यह कुछ हद तक उनकी अपनी प्रवृत्तियों का और कुछ हद तक परिस्थितियों का परिणाम पा। प्रतएव १५ वीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में और १६ वीं शताब्दी में लगातार सारे पश्चिमी योरप में भावारागी को रोकने के लिये अत्यन्त निर्मम कानून बनाये गये। वर्तमान मजदूर वर्ग के पूर्वजों को इस बात कारण दिया गया कि उनको दूसरों ने सबर्दस्ती भावारा और मुहताज बना दिया था। कानून उनके साथ ऐसा व्यवहार करता था, जैसे वे अपनी इच्छा से अपराधी बन गये हों, और यह मानकर चलता था कि वो परिस्थितियां अब रह नहीं गयी थी, उन्हीं में काम करते रहना केवल उनकी अपनी भलमनसाहत पर निर्भर करता था। इंगलैण्ड में हेनरी सातवें के राज्य-काल में इस तरह के कानूनों का बनना प्रारम्भ हुमा। हेनरी पाने के राज्य-काल में १५३० में एक कानून बनाया गया, जिसके अनुसार ऐसे मिलारियों को, बो बूढ़े हो गये थे और काम करने के लायक नहीं रह गये थे, भीख मांगने का लाइसेंस मिल जाता था। दूसरी मोर, हट्टे-कट्टे पावारा लोगों को को लगाये जाते थे और मेलखानों में गल दिया जाता था। कानून के अनुसार, इन लोगों को गाड़ी के पीछे बांधकर उस बात तक कोई लगाये जाते थे, जब तक कि उनके बदन से खून नहीं बहने लगता पा, और उसके बाद उनसे कसम खिलवायी जाती थी कि वे अपने जन्म-स्थान को लोट जायेंगे या उस जगह चले जायेंगे, जहां वे पिछले तीन साल से रह रहे थे, और वहाँ "मम करेंगे" ("put themselves to labour")। यह भी कैसी भयानक विवना बी! हेनरी माठ के राज्य-काल के २७ वें वर्ष में एक कानून के द्वारा यह पुराना कानून बहाल कर दिया गया, और कुछ नयी पाराएं पहले से भी कड़ी बना दी गयीं। मये कानून के अनुसार यदि कोई मादमी दूसरी बार भावारागर्दी के अपराध में पकड़ा जाता था, तो उसको एक बार फिर कोड़े लगाये जाते थे और भाषा कान काट गला जाता था; और तीसरी बार पकड़े जाने पर तो उसे एक पक्के अपराधी और समाज के शत्रु के रूम में फांसी दे दी जाती थी। एवई छठे के राज्य-काल के प्रथम वर्ष-१५४७ - में एक कानून बनाया गया, जिसके अनुसार यदि कोई मायनी काम करने से इनकार करता था, तो उसे उस व्यक्ति की गुलामी करनी पड़ती थी, जिसने उसके खिलाफ यह शिकायत की थी कि वह अपना समय काहिली में बिताता है। पुलाम के मालिक को उसे रोटी और पानी, पतला शोरखा और बचा-बचाया मांस खाने को देना होता था। वह उससे किसी भी तरह का काम ले सकता था, चाहे वह काम कितना ही घिनौना क्यों न हो, और इसके लिये कोड़े का और जंजीरों का इस्तेमाल कर सकता था। परि पुलाम काम से चौवह दिन गैरहाजिर रहता था, तो उसे जीवन भर की पुलामी की सजा दी जाती थी और उसके माये या गाल पर गुलामी का "S" निशान बाग दिया बाता पा। यदि वह तीसरी बार काम भाग जाता था, तो उसको एक घोर अपराधी . . - .. सारी जमीन अब इस तरह से अनुत्पादक हो गयी है, मानो वह जर्मन सागर के पल में दूब गयी हो इस तरह के बनावटी बियावानों और रेगिस्तानों को पार फैलने से रोकने के लिये कानूनों को निर्णायक रूप से हस्तक्षेप करना चाहिये।' 11
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८२६
दिखावट