पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८५५

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८५२ पूंजीवादी उत्पादन लिये, श्रम करने के लिये प्रावश्यक तमाम साधनों से मजदूर के सम्बंध-विच्छेर की पिया को पूरा करने के लिये, एक छोर पर उत्पादन तथा जीवन-निर्वाह के साधनों को पूंजी में मान्तरित करने के लिये और दूसरे छोर पर जन-साधारण को पानिक समाज की उस बनावटी पैदावार में, मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों या "स्वतंत्र मेहनतकश गरीबों" में, बबल गलने के लिये इतना सब कष्ट और कुल उठाना बरी पा (tantae molis erat)।' यदि, मौगियर' के कवनानुसार, मुद्रा "अपने गाल पर रक्त का एक जन्म-बात धब्बा लिये हुए संसार में पाती है", तो हम कहेंगे कि जब पूंजी संसार में पाती है, तब उसके सिर से पैर तक प्रत्येक ठिा से रक्त और गंदगी बहती रहती है।' . 1 "Labouring poor" (" मेहनतकश गरीबों") का इंगलैण्ड के कानूनों में उसी क्षण से जिक्र होने लगता है, जिस क्षण से मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों का वर्ग नजर माने लगता है। इस नाम का एक मोर तो "idle poor" (" काहिल गरीबों"), भिखारियों मादि के व्यतिरेक में प्रयोग किया जाता है, और दूसरी पोर उसका उन मजदूरों के मुकाबले में इस्तेमाल किया जाता है, जिनके पास , उन कबूतरों की तरह , जिनके पर अभी काटे नहीं गये हैं, अब भी श्रम करने के कुछ साधन मौजूद हैं। कानूनों की पुस्तकों से यह नाम अर्थशास्त्र में प्रवेश कर गया, और कुलपेपर, जे. चाइल्ड आदि की रचनाओं से वह ऐडम स्मिथ और ईडेन को मिला। इतना सब जानने के बाद हम खुद इसका निर्णय कर सकते हैं कि जब "execrable political cant-monger" ("घृणित राजनीतिक शब्दाडम्बर रचने में सिद्धहस्त") एडमण्ड बर्क ने "labouring poor" (" मेहनतकश गरीब") नाम के प्रयोग को "execrable political cant" ("घृणित राजनीतिक शब्दाडम्बर") कहा था, तब उन्होंने कितने सद्भाव का परिचय दिया था। यह खुशामदी प्रादमी जब अंग्रेज धनिक-तंत्र से तनखाह पाता था, तब वह फ्रांसीसी क्रान्ति के खिलाफ़ की जाने वाली कार्रवाइयों की प्रशंसा किया करता था, और उसी प्रकार जब अमरीकी उपद्रवों के शुरू में वह उत्तरी अमरीका के उपनिवेशों से तनखाह पाता था, तब उसने इंगलैण्ड के धनिक-तंत्र के विरुद्ध उदारपंथी होने का ढोंग रचा था। असल में, वह शत प्रति शत एक प्रसंस्कृत बुर्जोमा था। उसने लिखा था : "वाणिज्य के नियम प्रकृति के नियम है और इसलिये वे ईश्वर के बनाये हुए नियम है।" (E. Burke, "Thoughts and Details on Scarcity", London, 1800, पृ० ३१, ३२।) प्रतः कोई पाश्चर्य नहीं, यदि वह, ईश्वर तथा प्रकृति के नियमों के अनुसार, अपने को सदा सबसे ऊंचे दामों में बेचने को तैयार रहता था। जिन दिनों यह एडमण्ड बर्क उदारपंथी था, उन दिनों का उसका एक अच्छा चित्र हमें रेवरेण्ड टकर की रचनाओं में देखने को मिलता है। टकर पादरी था और अनुदार-दली था। परन्तु फिर भी, जहां तक बाकी बातों का सम्बंध है, वह एक स्वाभिमानी व्यक्ति और योग्य अर्थशास्त्री था। भाजकल अर्थशास्त्र में जैसी गर्हित प्रसवान्तिकता का बोलबाला है और “वाणिज्य के नियमों " में जिसका अटूट विश्वास है, उसको देखते हुए हमारा यह परम कर्तव्य हो जाता है कि बर्क जैसे उन लोगों की असलियत को बार-बार बोलकर रखें, जो अपने उत्तरा रियों से केवल एक ही बात भिन्न थे, और वह यह कि उनमें कुछ प्रतिभा थी!

  • Marie Augier, “Du Crédit Public”, Paris, 1842 1

"Quarterly Reviewer" ने कहा है कि पूंजी प्रशांति और संघर्ष से दूर भागती है और बहुत भीर होती है । यह बात सच है, परन्तु केवल इतना ही कहना प्रश्न को बहुत अपूर्ण रूप में प्रस्तुत करना . . .