तैतीसवां अध्याय उपनिवेशीकरण का प्राधुनिक सिद्धान्त' . प्रशास्त्र निजी सम्पत्ति के दो भिन्न प्रकारों को सिद्वान्ततः गड़बड़ा देता है। इनमें से एक प्रकार की निजी सम्पत्ति उत्पादक के अपने भम पर भाषारित होती है और दूसरी प्रकार की निजी सम्पत्ति अन्य लोगों के मन से काम लेने पर भाषारित होती है। प्रशास्त्र यह भूल जाता है कि दूसरी प्रकार की सम्पत्ति न केवल पहली प्रकार की सम्पत्ति का प्रत्यक्ष प्रतिवाद होती है, बल्कि वह एकमात्र उसकी कन पर ही बड़ी हो सकती है। पर्यशास्त्र की मातृभूमि-पश्चिमी योरप-में मादिम संचय की क्रिया न्यूनाधिकाम में सम्पूर्ण हो चुकी है। यहां पूंजीवादी शासन ने या तो प्रत्यन म्प में राष्ट्रीय उत्पादन के सम्पूर्ण क्षेत्र पर अधिकार कर लिया है और या उन देशों में, जहां पार्षिक परिस्थितियों का कम विकास हुमा है, वह कम से कम अप्रत्यक्ष रूप में समाज के उन सभी स्तरों का नियंत्रण करने लगा है, जो वैसे तो उत्पादन की प्राचीन प्रणाली से सम्बंध रखते हैं, पर नयी प्रणाली के साथ-साप कमिक पतनोन्मुख अवस्था में जीवित है। पूंजी के इस बने-बनाये तैयार संसार पर अर्थशास्त्री कानून और सम्पत्ति की अपनी उन धारणामों को लागू करता है, वो उसको पूर्व-पूंजीवादी युग से विरासत में मिली है। और जितने बोरों से तव्य उसकी विचारधारा का सपन करते हैं, वह इन धारणामों को लागू करने में उतने ही अधिक व्या उत्साह और पालन का प्रदर्शन करता है। उपनिवेशों की बात दूसरी है। वहाँ हर जगह पूंजीवादी शासन उस उत्पादक के प्रतिरोष से टकराता है, जो श्रम के लिये पावश्यक तत्वों का स्वामी होने के नाते उस बम का जुन पनी बनने के लिये, न कि पूंचीपति का धन बढ़ाने के लिये उपयोग करता है। इन दो सर्वपा विरोधी प्र-व्यवस्थाओं का विरोध यहां पर व्यवहार में दोनों के संघर्ष के रूप में प्रकट होता है। वहां कहीं पूंजीपति के पीछे उसकी मातृभूमि का बल होता है, वहां वह उत्पादक के स्वतंत्र मम पर पापारित उत्पावन तथा हस्तगतकरण की प्रणालियों को बर्दस्ती अपने रास्ते से हटा देने की चेष्टा करता है। बो स्वार्थ पूंजी के बादकार, प्रशास्त्री, को स्वदेश में यह घोषणा करने के लिये विवश कर देता है कि उत्पावन की पूंजीवादी प्रणाली और उसकी विरोधी प्रणाली, . । यहां हम असली उपनिवेशों की चर्चा कर रहे हैं, जहां की धरती अछूती थी और जिन्हें स्वतंत्र भावासियों ने प्रावाद किया था। मार्थिक दृष्टि से संयुक्त राज्य अमरीका माज भी योरप का एक उपनिवेश ही है। इसके अलावा, वे पुराने बागान भी इस कोटि में सम्मिलित हैं, जहां वास-प्रथा का अन्त कर दिये जाने के फलस्वरूप पहले की परिस्थितियां एकदम बदल गयी है।
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८६०
दिखावट