११ भूमिका - 'पूंजी' के दूसरे खंड को प्रकाशन के लिए उपयुक्त रूप देना आसान काम नहीं था। इस बात का ध्यान रखना था कि पुस्तक आन्तरिक रूप से सम्बद्ध हो और जहां तक हो सके, अपने में पूर्ण हो। साथ ही इस बात का ध्यान भी रखना था कि वह केवल उसके रचयिता की कृति हो, उसके सम्पादक की नहीं। जो पाण्डुलिपियां सुलभ थीं और जिन्हें प्रेस के लिए तैयार किया जा रहा था, वे बहुत सी थीं और अधिकतर अपूर्ण थीं। इससे उपर्युक्त काम की कठिनाई और बढ़ गयी। हद से हद उन्होंने केवल एक पाण्डुलिपि (४) को पूरी तरह संशोधित और प्रेस के लिए तैयार किया था। लेकिन इसके बाद में संशोधन के कारण इसका अधिकतर भाग पुराना पड़ चुका था। भाषा की दृष्टि से अधिकांश सामग्री को अन्तिम रूप से परिष्कृत नहीं किया गया था, यद्यपि विषय-वस्तु की दृष्टि से उसका वहुत सा हिस्सा पूरी तरह तैयार कर लिया गया था। भाषा ऐसी ही थी, जैसी मार्क्स सामग्री संकलन करते समय इस्तेमाल करते थे : शैली में लापरवाही, वोलचाल के रूप बहुत ज्यादा , अक्सर रुक्ष , हास्यपूर्ण शब्दावली और मुहावरे, जहां-तहां अंग्रेजी और फ्रांसीसी भाषाओं के पारिभाषिक शब्द , और कभी-कभी तो पूरे वाक्य ही नहीं, पन्ने के पन्ने अंग्रेजी में लिखे हुए। लेखक के दिमाग़ में जैसे-जैसे विचार उठते थे और रूप ग्रहण करते थे, वैसे ही वह उन्हें लिखते जाते थे। कहीं तो वह पूरी बात कहते हैं और कहीं सिर्फ इशारे से काम लेते हैं, भले ही तर्क के विषय का महत्व दोनों जगह वरावर हो। उदाहरण के लिए, तथ्य सामग्री इकट्ठा तो की गयी है, लेकिन बहुत कम ही व्यवस्थित की गयी है, उसे परिष्कृत करने का काम और भी कम हुआ है। अध्याय समाप्त करने पर लेखक की अगला शुरू करने की जल्दी में अक्सर अन्त में कुछ असम्बद्ध वाक्य ही हुआ करते थे, जो यह दिखाते थे कि यहां अपूर्ण छोड़ी सामग्री आगे और विकसित की जानी है। और आखिरी कठिनाई उस प्रसिद्ध लिखावट की थी, जिसे कभी-कभी लेखक खुद भी नहीं पढ़ पाते थे। मैंने अपने को जहां तक वन पड़े, इन पाण्डुलिपियों को ज्यों का त्यों प्रस्तुत करने तक ही सीमित रखा है। मैंने उनकी शैली में केवल उन स्थलों पर तवदीली की है, जहां मार्क्स स्वयं ऐसी तवदीली करते। जहां बहुत ही ज़रूरत थी, और साथ ही जहां असंदिग्ध रूप से उनका आशय भी स्पष्ट था, वहीं पर व्याख्यात्मक वाक्य , संयोजनात्मक शब्द मैंने जोड़े हैं। जिन वाक्यों का आशय समझने में थोड़ी भी दुविधा हो सकती थी, उन्हें मैंने शब्दशः नक़ल कर देना उचित समझा। जिस सामग्री को मैंने नया रूप दिया है या अपनी ओर से जोड़ा . -
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१०
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