पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१२१

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१२० पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ बात होते हैं, परिचलन का दीर्घतर काल कीमतों को बढ़ा देता है, संक्षेप में वह लाभ बरावर करने का एक कारण बन जाता है। २) परिचलन काल आवर्त काल का एक दौर मात्र होता है, किंतु इस आवर्त काल में उत्पादन काल अथवा पुनरुत्पादन काल समाविष्ट रहता है। वस्तुतः उत्पादन काल अथवा पुनरुत्पादन काल के कारण होती है, वह परिचलन काल के कारण होती जान पड़ती है। ३) मालों का परिवर्ती पूंजी ( मजदूरी) में परिवर्तन उनके द्रव्य में पूर्ववर्ती परिवर्तन के कारण आवश्यक हो जाता है। अतः पूंजी के संचय में अतिरिक्त परिवर्ती पूंजी में परिवर्तन परिचलन क्षेत्र में अथवा परिचलन काल में होता है। फलतः ऐसा लगता है कि इस प्रकार प्राप्त संचय परिचलन काल के कारण ही हुआ है। परिचलन क्षेत्र में पूंजी मा -द्र तथा द्र - मा की दो विरोधी अवस्थाओं से गुजरती है; यह महत्वहीन है कि किस क्रम से। अतः उसका परिचलन काल भी दो हिस्सों में बंटा होता है, अर्थात माल से द्रव्य में परिवर्तन के लिए आवश्यक समय और द्रव्य से माल में परिवर्तन के लिए आवश्यक समय । माल के साधारण परिचलन के विश्लेषण से (Buch I, Kap. III) • हम पहले ही यह जान चुके हैं कि मा-द्र,वेचने की क्रिया , उसके रूपांतरण का सबसे कठिन भाग है, और इसलिए साधारण परिस्थितियों में वह उसके परिचलन काल का अधिकांश ले लेती है। द्रव्य की हैसियत से मूल्य सदा परिवर्तनीय रूप में विद्यमान होता है। माल की हैसियत से उसे पहले द्रव्य में परिवर्तित करना होगा, इसके पहले कि वह प्रत्यक्ष परिवर्तनीयता का यह रूप और इसलिए क्रिया के लिए निरंतर तैयार रहने का रूप धारण कर सके। फिर भी पूंजी की परिचलन प्रक्रिया में उसके द्र मा दौर का संबंध उसके मालों में परिवर्तित होने से होता है, जो किसी दिये हुए उद्यम में उत्पादक पूंजी के निश्चित तत्व बन जाते हैं। हो सकता है कि बाजार में उत्पादन साधन सुलभ न हों और पहले उनका उत्पादन ज़रूरी हो, अथवा दूर के बाजारों से उन्हें प्राप्त करना हो अथवा उनकी सामान्य पूर्ति अनियमित हो गई हो या भाव बदल गया हो, संक्षेप में ये ऐसी ढेरों परिस्थितियां हैं, जो द्रमा के साधारण रूप परिवर्तन में लक्षित नहीं होती, किंतु फिर भी उनके लिए परिचलन अवस्था के इस भाग में कभी कम , कभी ज्यादा समय दरकार होता है। मा -द्र और द्र- मा एक दूसरे से कालगत ही नहीं, स्थानिक द्वष्टि से भी अलग हो सकते हैं। संभव है कि ख़रीदने के बाजार से वेचने का वाज़ार अलग हो। उदाहरण के लिए, कारखानों के मामले में, ग्राहक और विक्रेता अक्सर भिन्न व्यक्ति होते हैं। माल उत्पादन में परिचलन उतना ही आवश्यक होता है, जितना स्वयं उत्पादन ; अतः परिचलन अभिकर्ता उतने ही आवश्यक होते हैं कि जितने उत्पादन अभिकर्ता। पुनरुत्पादन प्रक्रिया में पूंजी. के दोनों कार्य शामिल होते हैं; इसलिए उसमें यह आवश्यकता शामिल होती है. कि इन कार्यों के प्रतिनिधि या तो स्वयं पूंजीपति के रूप में अथवा उसके अभिकर्तायों, उजरती श्रमिकों के रूप में मौजूद हों। लेकिन इससे इसका कोई प्राधार नहीं मिल जाता कि परिचलन अभिकर्ताओं को उत्पादन के अभिकर्ताओं के साथ उलझा दिया जाये , जैसे कि इसका भी कोई आधार नहीं मिल जाता कि माल पूंजी और द्रव्य पूंजी के कार्यों को उत्पादक पूंजी के कार्यों के साथ उलझा दिया जाये । परिचलन अभिकर्ताओं की

  • हिंदी संस्करण : अध्याय ३।-सं०