पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२१

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भूमिका " " ** जैसा कि स्वयं ऐडम स्मिय पहले व्याख्या कर चुके हैं, यह कटौती श्रम का वही भाग हो सकती है, जिसे मजदूर कच्चे माल में उस मेहनत के अलावा जोड़ता है, जिससे उसे केवल मजदूरी अथवा मजदूरी का समतुल्य मिलता है। दूसरे शब्दों में यह कटौती वेशी श्रम के रूप में, श्रम के निवेतन भाग के रूप में होती है। इस प्रकार ऐडम स्मिय भी “पूंजीपति के वेशी मूल्य का स्रोत" जानते थे और भूस्वामी के वेशी मूल्य का स्रोत भी जानते थे। मार्क्स ने यह वात १८६१ में ही स्वीकार कर ली थी, जबकि रॉदवेर्टस और राजकीय समाजवाद की सुहावनी वासंतिक वर्षा में कुकुरमुत्तों की तरह लहलहाते उनके झुंड के झुंड के प्रशंसक यह सब भूल गये लगते हैं। मार्क्स आगे कहते हैं : “फिर भी वह एडम स्मिथ] लाभ और किराया ज़मीन में वेशी मूल्य जो विशेष रूप धारण करता है, उनसे वेशी मूल्य को एक विशेप संवर्ग के रूप में विभेदित नहीं करते हैं। यह उनके अनुसंधान में बहुत सी भूलों और अपर्याप्तताओं का स्रोत है, जो रिकार्डों के अनुसंधान में तो और भी ज्यादा हैं । यह वयान रॉदवेर्टस पर अक्षरशः सही बैठता है। उनका “किराया" मान किराया ज़मीन और लाभ का योग है। किराया जमीन के बारे में उन्होंने एक नितान्त भ्रामक सिद्धान्त रचा है और उनके पूर्ववर्ती लेखकों ने लाभ के बारे में जो कुछ कहा था, उसे जांचे विना वैसा ही मंजूर कर लिया है। इसके विपरीत मार्क्स का वेशी मूल्य मूल्य के उस योग का साविक रूप है, जिसे कोई समतुल्य दिये विना उत्पादन साधनों के मालिक हथिया लेते हैं और जो सर्वप्रथम मार्क्स द्वारा निरूपित विशिष्ट नियमों के अनुसार किराया जमीन और लाभ के विशिष्ट परिवर्तित रूपों में विभक्त हो जाता है। इन नियमों का प्रतिपादन तीसरे खंड में किया जायेगा। हम वहां देखेंगे कि सामान्य रूप में वेशी मूल्य की समझ से उसके लाभ और किराया जमीन में रूपांतरण की समझ तक ; दूसरे शब्दों में पूंजीपति वर्ग के भीतर वेशी मूल्य के वितरण के नियमों की समझ तक पहुंचने के लिए कई अंतर्वर्ती कड़ियां जरूरी हैं। ऐडम स्मिथ की अपेक्षा रिकार्डो काफ़ी आगे बढ़ते हैं। वेशी मूल्य के बारे में उनकी धारणा का अाधार मूल्य का एक नया सिद्धान्त है, जो वीज-रूप में ऐडम स्मिथ के यहां विद्यमान है, किन्तु जब उसे व्यवहार में लाने का अवसर आता है, तव रिकार्डो उसे प्रायः भुला मूल्य का यह सिद्धान्त समस्त उत्तरवर्ती अर्थशास्त्र का प्रारंभ विंदु बन गया। माल के मूल्य का उसमें सन्निहित श्रम की मात्रा के आधार पर निर्धारण करके वह श्रम द्वारा कच्चे माल में जोड़े गये मूल्य की मात्रा के पूंजीपतियों और श्रमिकों में वितरण और इस मूल्य के मजदूरी तथा अर्थात यहां वेशी मूल्य ) में विभाजन को प्रकट करते हैं। वह सिद्ध करते हैं कि इन दो हिस्सों का परस्पर अनुपात जो भी हो, मालों का मूल्य वही रहता है। उनका कहना है कि यह एक ऐसा नियम है, जिसके बहुत ही कम अपवाद हैं। मजदूरी और वेशी मूल्य (जिसे लाभ के रूप में माना गया है) के आपसी सम्बन्धों के बारे में उन्होंने कुछ बुनियादी नियमों की स्थापना तक भी की है, यद्यपि इन्हें बहुत मोटे तौर पर व्यक्त किया गया है (Marx, लाभ .

  • Karl Marx, Theories of Surplus-Value (Volume IV of Capital), Moscow,

1963, Part I, p. 83. - वही, पृ० ८१।-सं०

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