पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३३४

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विषय के पूर्व प्रस्तुतीकरण श्रम द्वारा न तो उत्पादित हुए हैं, और न पुनरुत्पादित । इस उलझाव के ज़रिये ऐडम स्मिथ वार्षिक उत्पाद के मूल्य के स्थिर अंश को गायव कर देते हैं। इस उलझाव का आधार उनकी मूल धारणा में विद्यमान दूसरी 'भ्रांति है। वह स्वयं श्रम के द्विविध स्वरूप में भेद नहीं करते - एक वह , जो श्रम शक्ति व्यय करके मूल्य रचता है, दूसरा वह मूर्त उपयोगी श्रम, जो उपयोग वस्तुएं (उपयोग मूल्य) रचता है। वर्ष भर में निर्मित कुल माल राशि , दूसरे शब्दों में कुल वार्पिक उत्पाद गत वर्ष में कार्यरत उपयोगी श्रम का उत्पाद है ; ये सव पण्य वस्तुएं केवल इस कारण विद्यमान हैं कि सामाजिक रूप से नियोजित श्रम उपयोगी श्रम की बहुशाखीय प्रणाली में व्यय किया गया था ; केवल इस तथ्य के कारण ही उत्पादन साधनों का माल उत्पादन में उपभुक्त और नये दैहिक रूप में प्रकट होनेवाला मूल्य उन पण्य वस्तुओं के समग्र मूल्य में मुरक्षित रहता है। इस प्रकार कुल वार्षिक उत्पाद साल के दौरान व्ययित उपयोगी श्रम का परिणाम है ; किंतु वार्पिक उत्पाद के मूल्य का केवल एक भाग ही साल के दौरान रचा गया है; यह भाग वार्षिक मूल्य उत्पाद है, जिसमें साल के दौरान गतिशील श्रम की मात्रा व्यक्त होती है। इसलिए यदि ऐडम स्मिथ अभी उद्धृत वाक्य में कहते हैं : “प्रत्येक राष्ट्र का वार्षिक श्रम वह निधि है, जो मूलतः उसके द्वारा साल में उपभुक्त सभी जीवनावश्यक वस्तुओं और सुविधाओं की पूर्ति करता है, इत्यादि ," तो वह केवल उपयोगी श्रम का एकांगी दृष्टिकोण अपनाते हैं, जिसने सचमुच इन सभी निर्वाह साधनों को उनका उपभोज्य रूप प्रदान किया है। किंतु वह यह भूल जाते हैं कि पूर्व वर्षों में पूरित श्रम वस्तुओं और उपकरणों की सहायता के बिना यह असंभव होता और इसलिए “वार्षिक श्रम" मूल्य तो रचता है, लेकिन जिस सारे उत्पाद का वह निर्माण करता है, उसका समग्र मूल्य नहीं रचता और नवोत्पादित मूल्य उत्पाद के मूल्य से अल्प होता है। यद्यपि हम ऐडम स्मिथ की इस विश्लेषण में अपने सभी उत्तरवर्तियों की अपेक्षा और आगे न जाने के लिए निंदा नहीं कर सकते ( यद्यपि प्रकृतितंत्रवादियों का सही दिशा में क़दम उठाना तव भी प्रत्यक्ष होने लगा था), लेकिन वह आगे चलकर उलझन में फंस जाते हैं और यह मुख्यतः इसलिए कि उनकी सामान्यतः माल मूल्य की “गूढ" धारणा का सतही धारणाएं निरंतर उल्लघंन करती रहती हैं, जो कुल मिलाकर उन पर हावी रहती हैं। फिर भी उनके वैज्ञानिक सहज बोध के कारण उनका गूढ़ दृष्टिकोण समय-समय पर पुन: प्रकट होता रहता है। . ४) ऐडम स्मिथ के यहां पूंजी और प्राय प्रत्येक माल के (अतः वार्षिक उत्पाद के भी) मूल्य का जो भाग केवल मजदूरी का समतुल्य होता है, वह पूंजीपति द्वारा श्रम शक्ति के लिए पेशगी दी जानेवाली पूंजी के वरावर होता है, अर्थात कुल पेशगी पूंजी के परिवर्ती अंश के बराबर होता है। पूंजीपति उजरती श्रमिकों द्वारा पूरित पण्य वस्तुओं के नवोत्पादित मूल्य के एक अंश के जरिये पूंजी मूल्य का यह भाग वसूल कर लेता है। परिवर्ती पूंजी चाहे इस अर्थ में पेशगी दी जाती है कि पूंजीपति उस उत्पाद में मजदूर के हिस्से के लिए, जो अभी विक्री के लिए तैयार नहीं है, या तैयार होने पर भी अभी पूंजीपति द्वारा वेचा नहीं गया है, उसकी द्रव्य में अदायगी करता है और चाहे वह श्रमिक द्वारा पहले पूरित पण्य वस्तुओं की विक्री से प्राप्त द्रव्य से अदायगी करता है, या 1