३३ भाग १ पूंजी के रूपान्तरण और उनके परिपथ अध्याय १ द्रव्य पूंजी का परिपथ पूंजी की वृत्तीय गति' तीन मंजिलों में होती है, जो पहले खंड में किये प्रस्तुतीकरण के अनुसार निम्नलिखित शृंखलाएं बनाती हैं : पहली मंजिल : माल और श्रम के बाज़ार में पूंजीपति ख़रीदार के रूप में प्रकट होता है। उसका द्रव्य माल के रूप में बदल जाता है अथवा वह द्र - मा की परिचलन क्रिया पूरी करता है। दूसरी मंजिल : पूंजीपति द्वारा खरीदे हुए माल. का उत्पादक उपभोग।. वह मालों के पूंजीवादी उत्पादक का काम करता है ; उसकी पूंजी उत्पादन क्रिया से गुजरती है। इसका परिणाम उत्पादन में प्रवेश करनेवाले. तत्वों के मूल्य से अधिक मूल्य का माल होता. है.। तीसरी मंजिल : पूंजीपति विक्रेता की हैसियत से. बाज़ार में वापस आता है। उसका माल द्रव्य में रूपान्तरित होता है, अथवा द्र मा परिचलन प्रक्रिया गुज़रता है। इसलिए द्रव्य पूंजी के परिपथ का सूत्र है : द्र- मा... उ... मा' -द्र' बीच की विन्दियां यह दिखाती हैं कि परिचलन क्रिया भंग हो गयी हैं; द्र' और मा' यह दिखाते हैं कि वेशी मूल्य द्वारा द्र और मा में वृद्धि हुई है। पहले खंड में पहली और तीसरी मंज़िलों का विवेचन केवल उस हद तक किया गया जिस हद तक दूसरी मंजिल यानी पूंजी की उत्पादन प्रक्रिया को समझने के लिए . वह अावश्यक था। इस कारण विभिन्न मंज़िलों में पूंजी जो रूप धारण करती है, और अपना परिपथ दोहराते हुए जो रूप वह कभी धारण करती है और कभी उतारती है, उनका विवेचन नहीं किया गया था। अब ये रूप हमारे अध्ययन का प्रत्यक्ष विषय हैं। अपनी विशुद्ध अवस्था में ये रूप क्या हैं , यह पहचानने के लिए सबसे पहले अपने मन से उन सब बातों को निकाल देना चाहिए, जिनका स्वयं रूपों के निर्माण या परिवर्तन से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसलिए हम यहां यह मानकर चलते हैं कि न केवलं मालं अपने मूल्यों के अनुसार बेचे जाते हैं, बल्कि यह भी कि यह शुरू से आखिर तकं समान परिस्थितियों में ही होता है। इसी तरह परिपथों में गति के समय मूल्य में यदि कोई ..परिवर्तन हो, तो उस पर भी ध्यान नहीं दिया गया है। था. 1 पाण्डुलिपि .२ से। - फे० एं० 3--1180
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