पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३९८

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साधारण पुनरुत्पादन ३६७ . - . 1 . I ( १,०००+१,०००३) और २,००० II के विनिमय में पहले इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि I(प+वे ) की मूल्य राशि में मूल्य का कोई स्थिर तत्व नहीं है, अतः उसमें छीजन की प्रतिस्थापना करनेवाला तत्व , अर्थात ऐसा मूल्य नहीं है, जो स्थिर पूंजी के स्थायी घटक से उन मालों को अंतरित हुअा है, जिनके दैहिक रूप में प+वे विद्यमान हैं। दूसरी ओर यह तत्व II में है और ठीक इस मूल्य तत्व के एक अंश का अस्तित्व ही उस स्थायी पूंजी की बदौलत है, जिसे द्रव्य रूप से अपने दैहिक रूप में तुरंत परिवर्तित नहीं होना है, वरन पहले अपने द्रव्य रूप में बने रहना है। अतः I (१,०००+१,०००३) और २,००० IIस का विनिमय तुरंत यह कठिनाई पेश करता है कि I के उत्पादन साधनों का, जिनमें २,००० (प+वे ) दैहिक रूप में हैं, विनिमय II की उपभोग वस्तुओं से, पूरे २,००० मूल्य के समतुल्य से करना है, जब कि दूसरी ओर उपभोग वस्तुओं के २,००० IIस का उनके पूरे मूल्य पर I (१,०००+१,०००३) के उत्पादन. साधनों से विनिमय नहीं हो सकता, क्योंकि उनके मूल्य के एक समभाग का - जो छीजन के अथवा प्रतिस्थापित किये जाने- वाले स्थायी पूंजी मूल्य ह्रास के बरावर है- पहले द्रव्य के रूप में अवक्षेपण होना होगा, जो वार्षिक उत्पादन की चालू अवधि में परिचलन के माध्यम का और आगे काम न करेगा और यहां हम केवल इसी की जांच कर रहे हैं। किंतु इस छीजन के तत्व की अदायगी करने का और २,००० IIस के माल मूल्य में समाविष्ट द्रव्य केवल क्षेत्र I से आ सकता है, क्योंकि II अपनी अदायगी नहीं कर सकता, वरन यह अदायगी अपना माल वेचकर ही करवाता है, और चूंकि २,००० IIस का सारा माल संभवतः (प+वे) खरीदता है। अतः इस ख़रीदारी के ज़रिये वर्ग I को उस छीजन को II के लिए द्रव्य में भी बदलना होगा। किंतु पहले प्रतिपादित नियम के अनुसार परिचलन के लिए पेशगी दिया गया द्रव्य पूंजीपति उत्पादक के पास लौट आता है, जो बाद में उसी के वरावर मात्रा का माल परिचलन में डालता है। यह स्पष्ट है कि IIस ख़रीदने में I २,००० का माल , और इसके अलावा हमेशा के लिए द्रव्य की वेशी राशि Il को नहीं दे सकता (विनिमय की क्रिया द्वारा उसके किसी भी प्रतिफल के विना )। वरना Iस माल संहति IIस को उसके मूल्य से ऊपर खरीदेगा। यदि II वास्तव में अपने २,०००स का विनिमय I ( १,०००+१,००°बे) से करता है, तो I पर आगे उसका कोई दावा नहीं रह जाता और इस विनिमय में परिचालित द्रव्य या तो I के पास या II के पास इसके अनुसार लौट आता है कि इन दोनों में से किसने उसे परिचलन में डाला था, अर्थात उनमें से कौन पहले ग्राहक बना था। इसके साथ ही II अपनी पण्य पूंजी का सारा मूल्य उत्पादन साधनों के दैहिक रूप में पुनःपरिवर्तित कर चुका होगा, जव कि हमारी कल्पना यह है कि विक्री के वाद वह उसके एक समभाग को वार्षिक पुनरुत्पादन की चालू अवधि में द्रव्य से उसकी स्थिर पूंजी के स्थायी घटकों के दैहिक रूप में पुनःपरिवर्तित नहीं करेगा। II के पक्ष में द्रव्य संतुलन तभी होगा कि अगर वह I को २,००० की चीजें वेचे और I से २,००० से कम' की, कहिये कि सिर्फ १,८०० की, ख़रीदे। उस हालत में I को नामे शेष २०० को द्रव्य में पूरा करना होगा, जो उसके पास वापस