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पृष्ठ:कालिदास.djvu/१०१

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[कालिदास के विषय में जैन पंडितों की एक निमूल कल्पना। लेखों के आधार पर दक्षिण का एक इतिहास लिख डाला है। उसमें एक अध्याय मापने मालखेड़ के राष्ट्रकूट (राठौड़ राजानों पर भी लिखा है। ' मालखेड़ में अमोघवर्ष (प्रथम) नाम का एक राजा था। शिला-लेखों और ताम्रपत्रों के आधार पर उसका शासन-काल ८१५ से ७७ ईसपी तक निश्चित हुना है। उसने कोई ६२ घर्ष राज्य किया। यह घड़ा पण्डित था। प्रश्नोसर-रन-माला नामक पुस्तक उसीकी रचना है। पुरानी अलङ्कारशास्त्र-सम्यधिनी फविराजमार्ग नामक एक और पुस्तक भी उसके नाम से प्रसिद्ध है। यह कानडी भाषा में है। जैन-साधु वीरसेन के शिष्य जिन-सेनाचार्य इस राजा के गुरु थे। जैनियो के ग्रादिपुराण नामक अन्य के कर्ता जिनसेन ही है। इस पुराण के पूर्ण होने के पहले हो ये परलोक-वासी हो गये। अतएव उनके शिष्य गुणभद्र ने उसकी पूर्ति की। भाचार्य जिनसेम का लिखा हुआ पार्वाभ्युदय माम का एक काव्य है। यह ईसा की नवीं सदी का है। उसमें कालिदास-रात मेघदूत के प्रत्येक श्लोक के एक एक घरण का कहीं कहीं दो दो का भी प्रावेएन करके पाच- नाय का चरित वर्णन किया है। अर्थात् मेघदूत के श्लोक- पार, समस्या के तौर पर, पार्श्वनाथ के चरित-वर्णन में घटा दिये गये हैं। यथा-