सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कालिदास.djvu/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कालिदास।]

ईसवी के सात शतक में नियम सत्याश्रय पुलकेशी ने हर्ष का पराम इसी हर्ष-पर्सन के आभय में थे। कालिदास की प्रशंसा की है। यथा-

निर्गतासु न पा करय कालिदास

मातिर्मधुरसासु मरोपिय

अतएप सिम मा कि का। पुराने हैं। इसके सिया पीजापुर जिले के गांव में प्रश ए शिला-लेस से भी यह है। इस शिला-लेख में रयि-कीति कालिदास भीर मारपि का माम लिया। कि मैं इन दोनों के सराही कीर्तिशाली हूँ-

येनापोनिन क्षम

स्थिरमपंविधा विकिमा निनामा

स विजया रवितीति

विताभितशालिवासमारविजीनि

इस शिला-सेल का समय एक- सपी, पहराम भीरमीशिमा-मंत्र में है। देखिए---

पशा लोका