पृष्ठ:कालिदास.djvu/१४४

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कालिदास। ]

चैयाकरण ये। अलवार-शाल के ये पारगामी परिडत थे। संस्कृत-भाषा पर उनकी निःसीम सत्ता थी। जो यात पे फहना चाहते थे उसे करिता-द्वारा व्यक्त करने के लिए सबसे अधिक सुन्दर और भाव-व्यञ्जक शब्दों के समूह के समूह उनकी जिता पर नृत्य सा करने लगते थे। फालिदास की कविता में शायद ही कुछ शब्द ऐसे हो जो सुन्दर और अनुपयोगी अथवा भावोद्योधन में असमर्थ समझे जा सकें। घेदान्त के ये शाता थे, आयुर्वेद के ये शाता थे, सांख्य, न्याय और योग के ये ज्ञाता थे, ज्योतिष के ज्ञाता थे, पदार्थ- विज्ञान के ये साता थे। लोकाचार, राजनीति, साधारण नीति आदि में भी उनकी असामान्य गति पी। महनि- परिवान के तो ये अद्भुत परिश्त थे। प्राति की सारी फरामात, उसके सारे कार्य, उनको प्रतिमा के मुकुर में प्रति- पिस्थित होकर, उन्हें इस तरह देख पाइत जिस तरह कि हथेली पर रवा या प्रामला देख पड़ता है। यह इस्लामनदो रहे थे। उनकी चतुरप्रता प्रमाण काकी उजियो और अपमानों में, जगह जगह पर, एतापत् चमक रहे हैं।

दर्शन-शास्त्रों का ज्ञान ।

प्रारम्म में कही गई शालिदाम की रयनामों से

पर यदचित दोसाहिशेष थे किया शिवागना

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