पृष्ठ:कालिदास.djvu/१५३

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[ कालिदास के प्रन्यों की बालोचना ।

है। प्रत्यक्ष शिक्षा में रस नहीं। इस तरह की शिक्षा में अपूर्व रसास्वादन के साथ साथ चिरस्थायिनी शिक्षा भी प्राप्त होती है। जो समालोचक ऐसे रहस्य का उद्घाटन करके कवि के श्रान्तरिक अभिप्राय को व्यक्त करता है यद्दी सचा समालोचक है।

जिसके कार्य या अन्य को समालोचना करनी है उसके विषय में समालोचक के हदय में अत्यन्त सहानुभूति का होना बहुत यावश्यक है। लेखक, कवि या प्रत्यकार के हृदय में घुसकर समालोचक को उसके हरएक परदे का पता लगाना चाहिए। अमुक उक्ति लियते समय कपि के दय की पया अवस्था थी, उसका याशय क्या था, किस भाव को प्रधानता देने के लिए उसने यह उचि कही थी यह जयतक समालोचक को न मालूम होगा तयतक यह उस उक्ति की ठीक समालोचना कमी न कर सकेगा। किसी पस्तु या विषय के सय अंशों पर अच्छी तरह विचार करने का नाम समालोचना है। यह तपतक सम्भव नही जपतक कवि और समालोचक के दयों में कुछ देर के लिए एफ.तान स्थापित हो जाय। कवि की कविता किस समय की है, उस समय देश की परा दशा थी, ममाज की पया द पी, तरकालीन लोगों के प्राचार-विचार और म्ययहार कैसे थे- इन पातों को अच्छी तरह जाने बिना समालोचना करते