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पृष्ठ:कालिदास.djvu/१६२

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कालिदाम।

कालिदास के प्रन्यों में रघुवंश सयस श्रेष्ठ है। उसकी सयाँसमता का कारण यह है कि उसमें महाकवि ने सृष्टि-नैपुगय का सयसे अच्छा चित्र पोचा है। और सृष्टि- चातुर्य का पुरम और सद्या ज्ञान होना ही कवि का सबसे पड़ा गुण है। इस गुण के विषय में विद्याभूषण महोदय ने बहुत कुछ लिखा है। उसका मतलब नीचे दिया जाता है।

कवि का प्रधान गुण सृष्टि-मैपुण्य है। सुन्दर सुन्दर चरित्रों की सृष्टि, और देश, काल तथा अवस्था के अनुसार, उस चरित्रावलि का काव्य में समावेश करना ही यि का सर्वश्रेष्ठ कौशल है। यह कौशल जिसमें नहीं उसमें । अन्य गुण चाहे जितने हो उसकी रचना उत्कृष्ट नहीं हो सकती। सृष्टि-वर्णन स्यमावनुरूप होने से मनोरम होता है। स्वभाव-प्रतिकूल होने से यही विरक्ति-जनक हो जाता है। इसीसे भारव्योपन्यास की अधिकांश घटनायें सहृदय- सम्मत नहीं। जो व्यापार स्वभाव के अनुसार होते है, भाव की सृष्टि में तदनुयायी व्यापारों का होना ही उचित है। यदि कवि अपने सृष्टि-कौशल में सांसारिक व्यवहार- समूह को स्वाभाविक व्यवहार की अपेक्षा अधिकतर मनोहर और पैचित्र्य-विभूपित बना सके तो उसका काव्य और भी सुन्दर हो। मनुष्य के प्रधान गुणों में यात्म-त्याग भी एक

गुण है। यह एक प्रकार की श्रेष्ठ सम्पत्ति है। संसार में

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