पृष्ठ:कालिदास.djvu/१६८

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कालिदास । पार में अटल विश्वास, मावरूपिणी पयस्विनी धेनु की परिचर्या, मिक्षार्थी अतिथि की अभिलारपूर्ति के लिए धरणीपति रामा की व्याकुलता, लोकरजन और राजसिंहासन निकला रखने के लिए नुपति के मारा अपनी प्राणोपमा. पसी का निर्यासनरूपी मात्म-स्याग आदि भनेक लोक- हितकर और समाज-शिक्षोपयोगी विषयों से रघुवंश मल- पता। विपा-भूषण महाराप को इस समालोचगा, परा विपचना, इस मोदघाटन से पाठकों को मालूम हो जाएगा रिपोरपुर्यरा सोत्तम काम माना जाता है और कालिकास को पगे फरिपुलगुरु की पदवी मिली है। समालोया का प्रागन कितना ऊँगा और गाहित्य की प्रति लिए उसको कितनी भारश्यकता है, यह बात गोगरी ममता तरह विहित हो जाएगी। जो गुदी की और महा- माप मालितामा पक भी गण-मनन नहीं सद मरने, प्रताप गं महो मिस कर लिए पाणिनि, परमि, और माल्यापन की मी अनि पा हातालमणाने तो पटा करते हैं शिवामूलीका प्रागा ताति मात मदहोगरता जामियामोतो . दोधारा-ग्यसनों को समिम ने दी शही रो मस्ती। उमरी गगी हामालोचनामा गत मनोमी विचारमा प्रकाशित