पृष्ठ:कालिदास.djvu/१८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कालिवाम।]. . . . . म यह यक्ष का मगरले जाने के लिए राजी होगा! - गिरि से अलफा तक जाने में विदिया, उच्चयिनी, प्रयन्ती, फनायल, रेवा, मिमा, भागीरथी, कैलास आदि नगरों, नदियों और पर्यतो के रमणीय दृश्यों का वर्णन कालिदास ने किया है। उन्हें देखने की किले उरकण्ठान होगी। कौन ऐसा स्वय-हीन होगा जो उज्जयिनी में महाकाल के और कैलास में शहर-पायंती के दर्शनों से अपनी आत्मा को पावन करने की इच्छान रखे? कौन ऐसा आत्म-शत्रु होगा जो जिङ्गल में लगी हुई पाग को जल की धारा से शान्त करके • चमरी आदि पशुओ को जल जाने से बचाने का पुण्य-सशय . करना न चाहे ? मार्ग रमणीय, देवताओं और तीयों के दर्शन, परोपकार करने के साधन-ये सब ऐसी याते है. , जिनके लिए मुढ़ से मूढ़ मनुष्य भी थोड़ा यहुत कष्ट खुशी से उठा सकता है। मेघ की आत्मा तो भाई होती है; सन्तप्तों

  • को सुखी करना उसका विरुद है। अतएव यह यक्ष का
सन्देश प्रसन्नता-पूर्णक पहुँचाने को तैयार हो जायगा,

इसमें सन्देह ही क्या है। . अपनी प्रियतमा को जीवित रखने में सहायता देने- धाले मेघ के लिए यक्ष ने जो ऐसा धमहारक और सुखद मार्ग यतलाया है वह उसके हृदय के औदार्य का दर्शक है। कालिदास ने इस विषय में जो कपि-कौशल दिखाया है