पृष्ठ:कालिदास.djvu/१९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[कालिदास के मेघदूत का रहस्य ।

खी-और पतिमाणा स्त्री के लिए और पया हो सकता है? यस का सन्देश उसकी पती के लिए सचमुच ही 'धोत्रपेया।

लियाँ नहीं चाहती कि उनके पति के प्रेम का छोटे से छोटा अंश भी कोई और ले जाय। ये उसके सपाश पर अपना अधिकार समझती है। वियोगावस्था में उन्हें अपने इस अधिकार के दिन जाने का डर रहता है। यक्ष इस यात को अच्छी तरह जानता है। इसके परिणाम से भी यह अनभिज्ञ नहीं। यही कारण है जो यह अपनी वियोग-कातरता का कारुणिक वर्णन कर रहा है। यही कारण है जो यह छोटी छोटी चीज़ों में भी अपनी पत्नी की सदृशता रहा है। पही कारण है जो यह उत्तर-दिशा से आये हुए सुरभित पपन के स्पर्श को भी बहुत कुछ समझ रहा है। यह यह पतला रहा है कि दूर हो जाने से मेरे प्रम में कमी नहीं हो गई। प्रत्युत पह पहले से भी अधिक प्रगाढ़ हो गया है। प्रतपय अपने मन में किसी प्रकार की अनुचित आशका को स्थान न दे।

पक्ष के निःस्वार्थ और निर्व्याज-प्रेम की सीमा नहीं निर्धारित की जा सकती। यह अपने कुशल-समाचार भेजकर और अपनी विरह-व्याकुलता का

चुप नहीं रहा। उसे शश हुई कि कहीं मेरी पनी इस

१८१