कानिवास।
पेठी । यह मन ही मन प्रसन्न जरूर होती होगी। किर उसकी किमी घंटा का उल्लंग पगे नहीं। यह कैसी महाकयिता ६१ साधारण प्रादमियों को भी यह पान पटके, पर महामार को नहीं माधर्यस प्रकार के उपालम्भ फा किला हमारे मन में पनकर तैयार होने ही को था कि फालिवाम की करिता-रुपिणी विशाल तोप से एक छोटे, पर पड़े ही प्रभावशाली, गोले ने निकलकर उसे एक- दम सदा दिया। उसकी चहारदीवारी पूर हो गई। उसके पुर्ज जमीन पर गिरकर देर हो गये। उसके साथ ही एक ऐसे प्रासादिक कवि की सादरता पर गन में माप करने के लिए हमको पेद भी दुमा और अफसोस भी हुमा दो ही एक श्लोग हम आगे पढ़े ये कि कालिदास ने अपने महाकविय का यह परिचय हमें दिया जो हमको कमी न भूलेगा। उससे, उस समय, जो आनन्द हमको हुमा यह सम्रया अनिर्धचनोव है। सर्गान्त के पहले ही कालिदास ने सहसा कह दिया-
पर पादिनि देवा पापिनुप्पोमुती।
जीखाकमपाणि गणपामास पाती।
इस तरह देयर्वि जिस समय विवाह को पाते कर रहे थे, उस समय पिता के पास सिर झुकाये हुए
आर्मती पा करती थी ! कुछ नहीं। चुपचाप बैठी हुई