पृष्ठ:कालिदास.djvu/१९८

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सी पाते अपने जन्म-स्थान में सुनने को मिली। इससे --सम्मय की धैवाहिक उक्तियाँ हमको स्मरण हो पाई फालिदास के दो-चार श्लोक हमारे दय में फिर से गये। उनको भी हम यहाँ पर सुनाना चाहते हैं।

पाळती के विवाद की तैयारी हो रही है। माल- के अनन्तर एक सखी उसका शहार कर रही है। जय रों पर लाक्षारस । महापर) लगा चुकी तब एक पैर प रपफर पार्वती से यह कहती है-

परयुः शिश्चमकलाम

स्पर्शति राख्या परिवारापम् ।

सायिरवा चरणी पतासी.

मांगेत हा निधन धान ।

र महापर लगाकर और माशीव कर, पायंती की उपसे दिलगी में यह कहा कि इसी पर सेतू पपने की शीरावाली धन्दकला को स्पर्श कीजियो। पद पायंती मुंह से तो पुखर पोली, पर अगा - फैकर उससे सभी को उसने मारा। पाती - क्रिया में पिहल नामक मनुगार है। उसकी यह नही गामपित हुई। बुध कहकर मीरा । उमने माना हश्य बोलकर मगो के गामनरल

"य" या "माण फार", पद निकोबार का

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