[कालिदास की कविता में चित्र पनाने योग्य म्पल ।
उसे जङ्गल में चराने के लिए ले जाने लगे। कां रोज़ तक उन्होंने उसकी पड़ी सेया की। तथ नन्दिनी ने उनकी भरित पो परीक्षा लेने का निश्चय किया। उसने माया रची। यह हिमालय की एक फन्दरा में जा धुमी। यहाँ एक मायावी शेर ने उसे पकड़ा। पह चिलाने लगी। राजा दौड़ा। उसने शेर पर याण चलाना चाहा। पर हाथ ही उसफा धतुप पर चिपक गया। पाए न छूट सका। तब शेर मनुष्य की पाणी योला। उसने कहा, मैं महादेव का गण । यहाँ पर जो यह देयदाम का पेड़ है इसीको रक्षा करता है। पाये गये जीयों को पाकर यही अपनी क्षमा शान्त करने की आशा मुझे शहर ने दी है। इस गाय को मैं न छोड़ेगा। तम अपने घर जानो। राजा ने उसे बहुत कुछ समभाया। पर उसने एफ. न मानी। तय दिलीप ने कहा-इस गाय की रक्षा का भार मैंने अपने ऊपर लिया है। तुम मुझे पाकर अपनी क्षुधा शान्त करो। पर इसे छोड़ दो। इस पर शेर ने राजा को मूर्य बनाया। उसने कहा- तुम पागल हो गये हो। इतना बड़ा राज्य, इतना विशाल ऐश्वर्य, यह नई उम्र, इस सव को एक गाय के लिए छोड़ते हो। श्रजी, एक का, तुम इस तरह की और दस-धीस गायें घशिष्ठ को दे सकते हो। यह न सही। इसे मुझ सा लेने दो। दिलीप
पोते-मैं इस नश्वर शरीर की परवा नहीं करता। इसकी