सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कालिदास.djvu/४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ कालिदास का प्राविर्भाव-काल । 'घाले को उस राजाका नाम न मालूम था। जैसे शक संवत् का प्रयोग करनेवाले उसके प्रवर्तक का नाम सदा नहीं देते धैसे ही, जान पड़ता है, इस संचत् के प्रवर्तक का नाम इन पुराने शिला-लेखों और ताम्रपत्रों में नहीं दिया गया, केवल मालव- संवन् या मालवेश-संवत् दिया गया है। पर इससे यह कहाँ सिद्ध होता है कि इसका प्रवर्तक कोई राजा या पुरुष- विशेष न था ? मालव-निवासियों के एक देश या स्थान को छोड़कर अन्य देश या स्थान में जा बसने की किसी घटना का कुछ पता नही । न उनके किसी प्रसिद्ध नगर या इमारत बनाने की किसी घटना का कोई उल्लेख है। न उनके द्वारा की गई किसी और ही बहुत बड़ी बात का कोई प्रमाण है। फिर मालव-निवासियों के द्वारा इस संवत् का चलाया जाना क्यों माना जाय ? इसका प्रवर्तक वो न कोई राजा माना जाय? 'मालवेश' का अर्थ क्या 'मालव-देश के राजा' के सिवा और कुछ हो सकता है ? जरा देर के लिए मान लीजिये कि इसका श्रादिम नाम मालय-संवत् ही था । श्रच्छा तो इस नाम को बदलकर कोई 'विक्रम-संवत्' करेगा पयों? कोई भी समझदार यादमी दूसरे की चीज़ का उल्लेख अपने नाम से नहीं करता । किसी विजेता राजा को दूसरे के चलाये संवत् को अपना कहने में कया कुछ मी लजा न मालूम होगी? वह अपना एक नया संवत् सहज