प्राईमपी में, परास्त किया था। पर इसका कई प्रमाण नही, यह सिर्फ इन विद्वानों का प्रयामी पुलाव है, और कुछ नहीं। उन्होंने प्रत्यरूनी के लेनों का जो प्रमाल दिया है उसमें यह थात कापि नहीं सिद्ध होती । अल्यानी के लंग का पूर्यापर विचार करने से यह मालूम होता है कि उसके मत में पूर्वोत कार का युद्ध ५४४ ईमरी के पात पहले हुआ था। थतएव इस यात को मान लेने में कोई बाधा नहीं कि विग्रमादित्य ने ही इस युद्ध में शको को परास्त किया था। इसी विजय के कारण यह शकारि नाम से प्रसिद्ध हुआ। इमी समय से और इसो उपलक्ष्य में उसने अपने नाम से विक्रम संवत् चलाया। यह जीत यहुत पड़ी थी। इसी कारण, इसके अनन्तर शकों और अन्यान्य म्लेच्छों का परामय फरनेवाले राजाओं ने विक्रमा- दिल्य-उपाधि धारण करना अपने लिए गर्व का यात समझा। तयसे विक्रमादित्य एक प्रकार की उपाधि या पदवी हो गई। कल्हण ने राजतरङ्गिणी में विक्रमादित्य-विषयक बड़ी यड़ी भूलें की हैं। हर्ष-विक्रमादित्य और शकारि विकमादित्य, दोनों को गइमह कर दिया है। डास्टर स्टीन आदि विद्वानों ने इस बात को अच्छी तरह सिद्ध करके दिखा दिया है। पुरातत्त्वज्ञ पण्डित कल्हण की इन भूलों को बिना किसी सोच-विचार के भूले कहते हैं। कल्हण के
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