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पृष्ठ:कालिदास.djvu/५७

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[ कालिदास का आविर्भाव झाल। को लोग दीप-शिखा-कालिदास कहते आये हैं। रघुवंश के छठे सर्ग में एक श्लोक है- सवारिणी दीपशिखेव रात्रौ यं यं व्यतीशय पर्तिवरा सा। नरेन्द्रमार्गाह व प्रपेदे विवर्णभावं स स भूमिपालःn . इस मनोहर पद्य में जो 'दीप-शिखा' पद है उसी. के कारण प्रसिद्ध कालिदास का नाम दीप-शिखा-कालिदास पड़ गया है। किरातार्जुनीय के एक पत्र में 'श्रातपत्र', शिशुपालवध के एक पद्य में 'घण्टा', और हरविजय के एक पद्य में 'ताल' या जाने से इन तीनों काव्यों के कर्ता यथा-कम यातपत्र-भारवि, घण्टा-माघ और ताल-रत्नाकर कहलाते है। इससे यह जान पड़ता है.कि प्राचीन कवियों के कार्यो में यदि कोई विशेष सुन्दर शब्द आ जाते थे तो वे उन शब्दों के नाम से पुकारे जाने लगते थे। अस्तु । हमें औरों से .मतलय नहीं, मतलव केवल दीप-शिखा-कालिदास से है। जिस महाकवि ने रघुवंश की रचना की है उसीने कुमारसम्भव, मेघदूत, शकुन्तला, विक्रमोर्वशी और मालवि- काग्निमित्र की भी रचना की है। इनके सिया तुसंहार और शृङ्गार-तिलक आदि और भी कई छोटे छोटे फाय इसी महाफधि के घनाये मालूम होते हैं। पर इन पिछले काव्यों की रचना रघुवंश यादि पूर्व-निर्दिए कार्यों की रचना के पहले की है।