[कालिदास का प्राविर्भाय-काल । घाजतक कालिदास के समय-सम्बन्ध में विद्वानों ने जिन कल्पनाओं का प्राश्रय लिया है उनमें से प्रधान प्रधान कल्पनामों का सम्बन्ध नीचे लिखी घटनाओं से है- (क) अग्निवर्ण के पुत्र का समय । (ख) विक्रम संवत् के प्रारम्भ का समय । (ग) स्कन्दगुप्त का समय। (घ) कोरूर के युद्ध का समय । इनके सिवा किसी किसी ने ईसा के ग्यारहवे शतक मैं धाराधिप भोज के यहाँ भी कालिदास के होने की कल्पना की है। पर यह कल्पना बिलकुल ही युक्तिहीन है। इस कल्पना के उद्भावकों को इसकी शायद खबर ही न थी कि कालिदास नाम के अनेक कवि हो गये हैं। भोज के समय में यदि कालिदास नाम का कोई कवि रहा हो तो हो सकता है। पर यह रघुवंश प्रादि का फर्ता नहीं हो सकता। पम्बई के डाक्टर भाऊ दाजी ने मातृगुप्त को हो कालिदास सिद्ध करने की चेष्टा की थी, पर उनकी यह चेष्टा और कल्पना अत्यन्त हो असार है। अतएव उस पर भी कुछ न कहकर पूर्वोक्त कल्पनाओं पर ही विचार किया जाता है। रघुवंश के उन्नीसचे सर्ग में राजा अग्निवर्ण का वृत्तान्त है। उसीको लिखकर कालिदास ने रघुवंश की समाहि कर दी है। पर समाप्ति-सूचक कोई बात नहीं ५३
पृष्ठ:कालिदास.djvu/५९
दिखावट