चन्द्रगुप्त ने, बूढ़े होने के कारण, न की होगी। पर यदि परन्तप के विषय में कालिदास कोई अनुचित बात लिख देते तो वह चन्द्रगुप्त को अवश्य असह्य होती। इसीसे उन्होंने ऐसा नहीं किया।
रघुवंश के छठे सर्ग में मगधाधिप परन्तप का वर्णन करते समय कालिदास ने लिखा है—
ज्योतिष्मती चन्द्रमसैव रात्रिः
इसके धागे अवन्ति-नरेश के वर्णन में उन्होंने कहा है—
इन्दु नवोत्थानमिवोन्दुमत्यै
इन श्नोर्को में ‘चन्द्रमस' और 'इन्दु' शब्दों का प्रयोग करके तो कालिदास ने चन्द्रगुप्त से अपना सम्बन्ध साफ हो प्रकट कर दिया है। इसी प्रकार का साङ्केतिक पर्णन विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस की प्रस्तावना में भी किया है। यथा-
क्रूरग्रहः सकेतुश्चन्द्रमर्स पूर्णमएडलमिदानीम्।
अभिभवितुमिच्छति बलादक्षत्येनं तु वुधयोगः॥
यहाँ पर भी 'चन्द्रमसं पद से मौर्य चन्द्रगुप्त का अर्थ ध्वनित किया गया है। कालिदास ने भी पूर्वोक्त श्लोकों