कालिदास शताप्दी में विद्यमान थे। हिमलााट फाम साहय अपना सुर कुछ धीमा करके योले-नहीं, कालिदास का ईसा की श्रा. ठयी शताब्दी में होना निश्चित है। पीटर्सन साहब ने कालि दास को एकदम ईसा की पहली शताब्दी में पहुंचा दिया । कोलहान और दिलफर्ड इत्यादि उन्हें ईसा की पाँची शतापी में लाकर निधिन्त हो गये। हमारे लिए सौभाग्य की पात इतनी ही है कि समालोचकों की यथेष्ट कृपा-दृष्टि होने पर भी हम निर्भयता- पूर्वक कह सकते हैं कि ऋतु-संहार और मेघदूत, कुमार- सम्भर और रघुवंश, द्वात्रिंशन् पुत्तलिका, विक्रमोर्वशी, मालविकाग्निमित्र और शकुन्तला-ये सय नाटक और काय एक हो कवि, सयं कालिदास, को अमर लेखनी से निकले हैं। अपने इन्हीं फायो के कारण ही हमारे कालिदास, चासर और टामसन की तरह उस येणी के स्वमाव-सिद्ध कवि, शेली और स्वेनवर्न की तरह गोति-कायों के रचयिता, पाल्टेयर की तरह जातीय महाकाव्यों के प्रणेता, योकेशियो की तरह आख्यायिका लिसने में सिद्धहस्त, और कार्नल काल्हेरने की तरह प्रचलित प्रथा की नाटप-रचना में निपुण माने आते हैं। हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि कालिदास का आसन इतना ऊँचा नहीं जितना कि होमर, सोफेक्लिस, पर्जिल, वान्ते, शेक्सपियर और मिलन का है। भान आते हैं। प्रचलित प्रयाहस्त, और
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