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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१९६

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काव्य-निर्णय अथ प्रथम भार्थी उपमा जथा- समता, सम, बाचक, घरम, बरन च्यारि इक ठौर । ससि-सौ निरमल मुख जथा 'पूरन उपाँ' गौर' ॥ ससि समता, सौ सँम बचॅन, निरमलता है धर्म । बरनि सु मुख इहिं भाँति सों, जॉनों च्यारों मर्म:॥ वि०-"जहाँ समता ( जिसकी समता दी जाय) सम, वाचक और धर्म. अर्थात् उपमेय, उपमान्, वाचक तथा धर्म इन चारों का वर्णन किया जाय वहां पूर्णोपमा होती है, जैसा कि दास जी ने इन दोहों में वर्णन किया है। यहां मुख उपमेय, शशि उपमान, सौ वाचक तथा निर्मलता धर्म-श्रादि चारों का कथन है अतः पूर्णोपमा है।" उदाहरन जथा- संपूरन उज्जल उदित, सीतकरन अँखियाँन । 'दास' सुखद मन कों प्रिया-भानन चंद-समॉन ॥ वि०-"यहाँ दासजी ने प्रिया के आनन को चंद्र-समान वर्णन करते हुए- अति उज्वल, शीतल कारक और सुख का देने वाला कहते हुए बहु धर्म से संयुक्त पूर्णोपमा का उदाहरण प्रस्तुत किया है।" अन्य उदाहरन 'कवित्त' जथा- कदि के निसक पेंठि जाति' अरि झुन में, लोगन को देखि 'दास' मानदः-पगति है। दौरि, दौरि जाहि' साहि लाल करि डारति है, अंक लगि कंठ-नागिबे को उमगति है॥ चमकि-ममकि बारी, ठुमकि-जमकि बारी, मकि'-तकि बारी जाहिर जगति है। पा०-१. (सं० प्र०) डोर । इससे माले बैंकटेश्वर की प्रति में 'अस्य तिलक' शीर्षक के अतर्गत-हाँ 'ससिः उपमान, सो वाचक, निरमल धरम, मुख उपमेय ए चारों है, ताते पूर्णोपमा है। भादि और लिखा मिलाता है जो नीचे के दोहे में भा गया है। २.(३०) जाती ..( )(मा० जी० ) अड-झुउँन में। (२० कु०) २४..... 1. (मा. जी०) आनन । ४. (40) जहीं-तही ।५. (सं० प्र०)( )(म०म०) अग.."(भा० जी०) व्यगि... । ६. (३०) (२० कु० ) रैमकि...।