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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२५५

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२२० काव्य-निर्णय अन्य उदाहरण, यथा- "बाल-बदन-प्रतिबिंब-विधु, उयो रमौ तिहि संग। उयौ रहत प्रब रजनि-दिन, तपन तपाबत अंग ॥" -मतिराम (ललित-ललाम) अथ परजस्तापन्हुति उदाहरन जथा- कालकूट विष नाहि, बिष है केबल इंदिरा। हर जागत छकि याहि, वार सँग हरि नींदौ न तजे ।।* वि.-"पर्यस्तापन्हुति ( जब एक के गुण-धर्म का अारोप दूसरे में किया जाय-उपमान के गुण (धर्म) का अारोप उपमेय में कहा जाय) का उदाहरण श्री सोमनाथ का भी वड़ा सुंदर है, यथा- "हिएं लाल के चुभति-ही, बेसुध किए निदान । तीखे मनमथ-सर, नहीं तिय-ग तीन-बाँन ॥" रसपीयूर ( सोमनाथ ) __पं० राज जगन्नाथ जी और अलंकार-सर्वस्व की टीका विमर्शनीकार ने इस अपन्हुति (जैसा पूर्व में कह श्राये हैं ) को "दृढारोप रूपक" बतलाया है । उनका कहना है कि पर्यस्तापन्हुति में उपमान का निषेध किया जाता है, जो उपमेय में दृढ़तापूर्वक अारोप (रूपक) करने के लिये होता है, इसलिये अप- न्हुति नहीं बनती।" अथ श्रांतापन्हुति उदाहरन यथा- आँनन है, अरबिंद न फूले, अलीगँन भूलें कहा मँडरात हौ। कीर, तुम्हें का बाइ लगी, भ्रम बिंब के ओठन को ललिचात हौ ।। 'दास जू व्याली न, बेनी बनाव है, पापी-कलापी कहा इतरात हो । बोलती बाल, न बाजता बीन, कहा सिगरे मृग घेरति जात हो पा०-१. (प्र.)...जाहि । ( सू० स० ) वाहि . । २. ( सू० स० ) यहि...। ३. (ह. ह. ) फूल्यो। ४.(ह. ह. ) हैं। ५. (ह. ह.)...कहा तोहि बाइ भई । ६. (र० कु० ) से। ७. ( ह. ह. ) हैं। 4. (र० कु० ).. माली न बेंनी रच्यो तुम पापी...1 ६.(ह० ह० ) हरखात हैं। १०.(सं० प्र०) बोलत... (ह० ह०) वाजत बीन न, बोलति बाल......। ११. ( ह. ह.) हैं।

  • स० स० ( ला० भ० दी०) पृ० ६४, ६७। २० कु. (प्रयो०) पृ० वय,

२२७ । ह० ह० (ह० जु०) पृ० २६१, २०। अ० १० (पो०) पृ० १३०, २०६ । मा० भू० (के०) पृ०११६ । ।