संपादक के कुछ शब्द
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ब्रजभाषा ग्रंथों का मुद्रण उन्नीसवीं शती के प्रारंभ में हो गया था। मथुरा, आगरा, जयपुर, दिल्ली, लखनऊ, काशी, पटना, कलकत्ता[१] -आदि से ब्रजभाषा के गद्य और पद्य के अनेक ग्रंथ इन स्थानों के शिलायंत्रों (लीयो) में छपकर प्रकाश में आये। यह प्रकाशन का सिलसिला यहीं समाप्त नहीं हुआ---टायप-युग के पूर्वज नवलकिशोर प्रेस लखनऊ, वेंकटेश्वर प्रेस बंबई, भारत जीवन प्रेस काशी और खड्ग विलास प्रेस पटना (बिहार) इत्यादि ने बड़े उत्साह के साथ ब्रजभाषा ग्रंथ-प्रकाशन का कार्य निरंतर जारी रखा, जिससे बड़े-बड़े दुर्लभ ग्रंथ-रत्न सुंदर रूप में प्रकाशित हुए। फलतः प्रेस-युग से पूर्व जो ब्रजभाषा-काव्य भारतीय जनों का केवल कंठ-हार था, विशिष्ट स्थानों की हस्त-लिखित रूप मंजुल मंजूषाओं में आबद्ध होने के कारण बड़ी कठिनता से दर्शनों को मिलता था, अब वह प्रायः सभी भारतीय प्रासादों की शोभा बढ़ाने लगा। सच तो यह है कि उन्नीसवीं शताब्दी का यह समय ब्रजभाषा-काव्य-ग्रंथ-प्रकाशन के लिये स्वर्ण-युग था, जिसे भारत के हिंदू-मुसलमान दोनों नागरिकों ने समान उत्कंठा के साथ खुले दिल से सँजोया। टायप-युग का आदि चरण भी ब्रजभाषा-ग्रंथ-प्रकाशन के लिये वरद सिद्ध हुआ। इस समय अज्ञात-कुलशील पं. कालीचरण[२] से आदि लेकर भारतेंदु बा० हरिश्चंद्र[३] जिन्हें मधुर ब्रजभाषा को और भी मघर बनाने का, रीति-काल के पंक से निकाल कर पुनःसंस्कार के साथ स्वच्छ रूप देने का श्रेय प्राप्त है, के अतिरिक्त डुमराँउ के नकछेदी तिवारी[४] उपनाम---'अजान कवि, पं. मन्नालाल काशी,[५] बा. रामकृष्ण वर्मा
- ↑ मुबैउल उलूम प्रेस मथुरा, मतबअ ईजाद---मतबअ कृष्णलाल आगरा, मतबअ ई ईजाद जयपुर, मतबअ इलाही दिल्ली, नवलकिशोर प्रस लखनऊ, बनारस लायट प्रेस काशी, खड्गविलास प्रेस पटना, बपतिस्मा प्रेस कलकत्ता आदि।
- ↑ पं० कालीचरण ने सं० १९२० वि० में अयोध्या के राजा मानसिंह उपनाम 'द्विजदेव' की देखरेख में सूरसागर का संपादन कर नवलकिशोर प्रेस लखनऊ से प्रकाशित कराया था।
- ↑ भारतेंदुजी द्वारा संपादित ग्रंथ 'सूरशतक' हमारे देखने में आया है, जो बनारस के लायट प्रेस में स० १८८२ ई० में छपा था।
- ↑ इनके अनेक संपादित ग्रंथ भारत जीवन प्रेस काशी से निकले, प्रधान ग्रंथ संग्रहात्मक मनोज-मंजरी तीन भाग में प्रकाशित हुआ है।
- ↑ पं० मन्नालाल संपादित ग्रंथ-सुंदरी संग्रह, सुंदरी सर्वस्व, शृंगार सुधाकर है।