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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४५३

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४१८ काव्य-निर्णय लोक के पूर्ण लक्षण को उसी रूप-रंग में अपनाया है और उदाहरण दिया है- नमयंतु शिरांसि धषि वा...."अर्थात्, “सत्रु सीस कै सस्त्र निज, भमि-गिराऊँ माज" जैसा दासजी ने कहा है। विकल्प में चार बातें-१, दो सहश बल की वस्तुएँ, २, दोनों एक-ही के द्वारा साथ-साथ न हो सकें, ३, ऐसा होने से दो में इच्छानुसार एक कर सके और ४, दोनों में कल्पित सादृश्य हो, श्रावश्यक मानी जाती हैं। विकल्प, केवल विकल्प होने पर अलंकार नहीं बनता, जैसे इस अलंकार-श्राशय के अनुसार "भारती-भूषण" प्रयुक्त निम्न उदाहरण में - "एती सुवास कहाँ अनतै, बहकी इन भौतिन को बरछे है। आवत है वह रोज समीर लिऐरी सुगन को जु दल है। देखि अली, इन भाँतिन की भलि-भोरन मोर सु कॉनन है है। कै उत फूलन को बन होगी, के उन कुजन गधिका है।" 'यहाँ केवल विकल्प है, विकल्प अलंकार नहीं। अलंकार रूप में विकल्प वहीं होगा, जहां परस्पर विरोधी दो वस्तुओं की एकत्रित स्थिति असंभव होने पर विरोध हो । इस उदाहरण में वायु के सुगंधित करने और मृगावली के होने में श्री राधिका बी का और फूलों के बाग का (वहाँ) होना समान बज मात्र है। इनकी एकत्र स्थिति, असंभव न होने के कारण विरोध सूचित नहीं करती, अपितु दोनों के एकत्र होने पर भी वायु का सुगंधित तथा मृगावली का वहाँ होना संभव है।" यह सेठ कन्हैयालाल जी का अभिमत है, क्योंकि विकल्प के अलंकार रूप में यह निश्चय रहता है कि दो में से कोई एक अवश्य है। संदेह अलंकार में अनिश्चय होता है, यहाँ निश्चय, और यहो इन दोनों की विलगता है। विकल्प को समुच्चय अलंकार के विपरीत भी कहा जाता है, क्योंकि विकल्प में समान बल वालों की एक ही काल में एकत्र स्थिति का होना असंभव कहा जाता है और समुच्चय में समान वल वालों को एक काल में एकत्रित स्थिति का वर्णन किया जाता है।" बिकल्प उदाहरन जथा- जाइ उसासँन के संग छूटि, के चंचला के चइ लूटि लै जाँहीं। चातक पातक पच्छिन देहि, के लेहि घने घुन जे फहरांहीं । पा०-१. (का०) (३०) (प्र०) कि.... २. (प्र०) पातक लों हि मनों कि धनाधन जोन घने.... ३. (का०) (३०) कि...।