पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४५५

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४२० काव्य-निर्णय किंतु साधारण वर्णन में 'सह-श्रादि शब्दों के रहने पर भी यह (सहोक्ति) अलं- कार वहां नहीं बनता । सहोक्ति, अतिशयोक्ति का मिश्रण चाहती है, इसका विशद विवेचन करते हुए बा० ब्रजरन दास (अलंकार-रत्न) जी कहते हैं कि "राम, लक्ष्मण और सीता के साथ बन गये, इस कथन में सहोक्ति का वाचक 'साथ' शन्द के रहते हुए भी यहाँ सहोक्ति नहीं है, क्योंकि राम शब्द यहाँ कर्ता- कारक में है तथा प्रधान है, और लक्ष्मण तथा सीता शब्द अपादान-कारक में होने से अप्रधान हैं--गौण हैं। साथ-ही इस कथन में कोई उक्ति वैचित्र्य भी कवि- कल्पना द्वारा नयी नहीं की गई है । यहाँ 'साथ' शब्द केवल व्यक्ति-वाचक शब्दों का ही संबंध बतला रहा है, घटनाओं का नहीं, अतएव सहोक्ति भी नहीं । इसलिये सहोक्ति में अतिशयोक्ति का होना अत्यंत आवश्यक है । अतिशयोक्ति "अभे- दाध्यवसाय-मूलक" वा कार्य-कारण के पौर्वापर्य से होती है, इसलिये सहोक्ति भी श्लेपाश्लेष युक्त दो रूपों में कही जाता है। यही बात साहित्य-दर्पण के कर्ता विश्वनाथ चक्रवर्ती भी कहते हैं, यथा- "सहार्थस्य बलादेकं यत्र स्याद्वाचक द्वयोः। ___सा सहोक्तिमूलभूतातिशयोक्तिर्यदा भवेत् ॥" अर्थात् , "सह शब्दार्थ के बल से जहाँ एक शब्द दो अर्थों का वाचक हो वहाँ सहोक्ति और इसके मूल में अतिशयोक्ति अवश्य रहनी चाहिये...... इत्यादि ।" ___तुल्ययोगिता से सहोक्ति की पृथक्ता दिखलाते हुए श्रीवामनाचार्य अपने काव्यालंकार सूत्र में कहते हैं- "वस्तुद्वयक्रिययोस्तुल्यकालयोरेकपदाभिधानंसहोक्तिः" अर्थात्, दो वस्तुओं की तुल्यकालीन ( दो) क्रियाओं का एक (ही) पद से (एक साथ) कथन 'सहोक्ति' कही जाती है, क्योंकि" दो वस्तुओं की तुल्यका- लीन दो क्रियाओं का एक ही पद से कथन सहार्थक शब्द की सामर्थ्य से करना सहोक्ति है (काव्यालंकारसूत्र-वृत्ती-हिंदी-अनुवाद)। विनोक्ति भी जब प्रस्तुत वस्तु किसी अन्य वस्तु के बिना अशोभन या नहीं. अशोभन वर्णित की जाय, तब वहां होती है, क्योंकि इसका शब्दार्थ है-"किसी के बिना" । मूलतः इसमें भी कवि-कथन द्वारा उक्ति वैचित्र्य होना चाहिये। परिभाषा में 'शोभन है' न कहकर, 'अशोभन' नहीं कहा गया है जो सकारण है । इस पर साहित्य-दर्पणकार कहते हैं कि "अशोभन" का तात्पर्य यद्यपि वही शोभन है,-होता है, फिर भी वैसा न लिखने का कारण यह है कि वह वस्तु प्रकृत्या शोभन है, पर किसी अन्य वस्तु के सान्निध्य से अशोभन हो गयी है और उस अन्य वस्तु का सानिध्य हटते-ही वह पुनः अपनी प्रकृत शोभा से सुशोभित