४७६ काव्य-निर्णय करता है । वहाँ विशेषण साभिप्राय होता है, जिसके अर्थ से कहने के ढंग में विशेष चमत्कार उत्पन्न हो जाता है । काव्यलिंग में शब्द वा वाक्य का अर्थ दूसरे वाक्य की उक्ति का कारण बन जाता है -साक्षात् पदार्थ वा काक्याथ ही कारण भाव को प्राप्त हो जाते हैं।" ____काव्यलिंग के प्रति अलंकाराचार्यों में मत भेद है । कोई इसका लक्षण- "जो समर्थन के योग्य हो उसका समर्थन करना", कोई-"युक्ति से अर्थ का समर्थन करना" और कोई-"स्वभाव, हेतु वा प्रमाण-जन्य युक्तियों से समर्थन करने पर" इसे मानते हैं । ये लक्षण द्रविड़-प्राणायाम जैसे हैं, कहने के ढंग मात्र हैं, तथ्य-युक्त नहीं।" कायलिंग-उदाहरन जथा- ताल-तमासे को ओबत बाल के, कौतुक-जाल सदाँ सरसात है। सोर चकोरिन को चहुँ ओर, बिलोकत' बीच हियौ हरखात है। 'दास जू' भाँनन चंद-प्रकास ते, फूले' सरोज कली है जात है। ठौर-ही-ठौर बँधे अरबिंद, मलिंद के' बंद धुने भँननात है। वि० -"दासजी के इस उदाहरण में स्वभावोक्ति स्वरूप स्वभाव का समर्थन करते हुए काव्यलिंग है। पुनः उदाहरन जथा- हिऐं राबरे सांबरे, या ते लगत न बाँम । गुंज-माल-लीं भरध-तन,हों हूँ होउ न स्याम ।। छवि है इन्हीं को, इन्ह तिहारे खुले बाढून में, मेरौ सीस' छ-छै मोर - पंखन' बताई है। आनन-प्रभा कों अरबिंद जल - पेठों 'दास', बाँनी बर देति'• कल • कोकिल दुहाई है। पा०-१.( का०) (३०)।(सं० पु० प्र०) ताल तमासे या बाल के भावत...। (प्र.).....तमासे के भावत बाल को, । २. (प्र०) बिलकोत-ही हियरो हर...(सं0-. पु० प्र०).....हिऐ ...। ३. (का०) (प्र.) फूलो...। ४. (का० ) को... ५.. (का०) धनों...। ६. (का०) ए... (सं० पु०प्र०) (३०)(प्र०) इन-हीं की छबि है तिहारे...! ७. (सं० पु० प्र०) छुटे... क. (का०) (०) (प्र०) (सं० पु० प्र०) सिर...I. (का) (०) (प्र०) पच्छन...। १०. (का०) (३०) (प्र०) (सं० पु० प्र०) देती किल कोकिल....:
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