पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५१६

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काम्य-निर्णय मद-न कहॅन पासों बगे, तब ते पर विचार। हरी गयो पाको सुमब, मोहन-वन निहारि॥ "सूर - कुस - सूर महा प्रपल 'प्रताप' सूर, चूर करिबे को म्लेच्छ दूर-पॅम लीन्यों में । 'कई रतनाकर' विपत्तिनि की रेलारेल, मेल-मेल मातृ-भूमि-भक्ति-भाव-भीन्यों ते॥ बंस को सुभाव भी नॉम को प्रभाव थापि, दाप के दिलीपति कों ताप दीह दीन्यों तें। घाट-हरदी 4 जुद्ध गटि परि - मेद - पाटि, सारथ विराट मेदपाट नॉम कोंन्यों तें॥" लोकोक्ति-छेकोक्ति लच्छन बरनन जथा- सब्द जु कहिऐ लोक-गति, सो 'लोकोक्ति' प्रमाँन । ताहि कहत 'छकोक्ति' जो,' लिएँ होइ 'उपखाँन'। वि-“जहाँ कुछ ऐसे शब्द कहे जाँय जो लोकोक्ति (कहनावत ) रूप में प्रमाण हों, वहाँ 'लोकोक्ति' और जहाँ किसी उपखान ( कहनावत ) के साथ कोई बात कही जाय वहाँ 'छेकोक्ति' कही जाती है। अथवा जहाँ किसी बात में लोक-प्रबाद (कहावत ) हो वहां लोकोक्ति, और जहाँ कुछ अर्थ-सहित लोकोक्ति (कहावत ) कही जाय वहाँ 'छेकोक्ति' मानना चाहिये (भाषा-भूषण )। लोकोक्ति, शब्दानुसार जन-समुदाय में प्रचलित कहावत कही जाती है, किंतु शुद्ध-अर्थ में यह "मुहाविरा" है, कहावत नहीं । अर्थात् वा-मुहावरेदार कहने का एक ढंग है, जो कहावत नहीं हो सकता, पर जहाँ से यह अलंकार ब्रजभाषा में श्राया है वहाँ, अर्थात् चंद्रालोक में भी स्फुट नहीं हो सका है, जैसे- 'लोकप्रवादानुकृतिर्लोकोक्तिरिति भण्यते ।' श्रतएव किसी प्रचलित लोकोक्ति वा मुहावरे का उचित प्रसंग के सहारे प्रयोग कर कुछ चमत्कार पैदा करना 'लोकोक्ति' होगा और छेकोक्ति वहाँ, जहाँ कुछ अर्थातर-गर्भित लोकोक्ति रूप में बात कही जाय-प्रसंग वर्णन किया जाय । छेक का अर्थ चतुर होता है, इस लिये इस अलंकार में चतुरतापूर्ण अन्याथ से-अभिप्रायांतर से गर्मित लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है, यथा- पा०-१.(का० ) (0) (सं० पु० प्र०) ताही छकोक्तयो कहैं ..। (प्र०)... तो...। २.(का० )(३०) होइ लिऐ .... (सं० पु० प्र०) होइ लिऐ उपमान ।