पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५३०

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अथ अठारका उल्लास दीपकादि अलंकार बरनन जथा- दीपक - जम' भाँति को', अलंकार मति-चारु । अति सुख दायक वाक्य के, जदपि प्ररथ सों प्यार ॥ जथासंख्य, एकाबली, कारन-माला ठाइ । उत्तरोत्तर, रसनोपमाँ, रतनाबलि, परियाइ ।। ए आठों म'भेद हैं, दीपक एके पांच । आदि प्रावृत्ती देहरी, कारन-माला बाँच ।। वि.-"दासजी ने इस उल्लास में-दीपक, यथासंख्य, एकावली, कारण- माला, उत्तरोत्तर, रसनोपमा, रलावली और पर्याय-अादि अलंकारों के अतिरिक्त दीपक के "श्रर्थावृत्ति दीपक, पदार्थावृत्ति दीपक, देहरी-दीपक, कारक-दीपक और माला-दीपक पांच भेदों का भी स-उदाहरण वर्णन किया है, किंतु अन्य उल्लासों की भांति यहाँ इनके वर्गीकरण की विधि का कोई उपयुक्त कारण नहीं दिया है । विशेष-प्रतियों ( हस्त लिखित तथा मुद्रित ) के श्राधार से अलंकार- संख्या भी उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इन पुस्तकों में तीसरे दोहे के पाठानुसार सात ही संख्या जानी जाती है, जैसे-"ए सातों क्रम-भेद हैं....." यह पाठ की संख्या का सूचक पाठ एक ही प्रति में मिलता है, जो उपयुक्त है और अलंकार-संख्या के अनुसार भी ठीक है । अलंकार-वर्णन का क्रम भी श्रापका यहाँ ठीक नहीं है। माने को तो श्रीपने प्रथम दीपकालंकार का कथन किया है, कितु वर्णन किया है वाल्यो से, अर्थात् प्रथम यथासंख्य, एकावलो, कारण-माला, उत्तरोत्तरादि काम किया है। दोपक सबके अंत में है। त के अंलकार-प्रथों में ये अलंकार विविध वर्गों में है, जैसे-रुद्रट ने वीन-एकविली; कारण-माला, सार (उत्तरोत्तर) और यथासंख्य" वास्तव वर्ग में पा०-१कि०) (०) (प्र०) क्रम-दीपक है रीति...। २. (का०) (प्र०) के... विं०) ने...। ३. (ENTER ० ) छवि.... ४. (का०) (३०) (प्र०) सातों.... ५. (का०) (३०) भात्यो... (40) प्रावृत्ती....