पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५८२

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काव्य-निर्णय १४७ वि०-"दासजी ने यहाँ वृत्तियों--"उपनागरिका, परुषा एवं कोमला का वर्णन किया है । श्रापका कहना है कि "मधुर वर्ण-युक्त अर्थात् कर्ण-कटु 'ट'- वर्गीय वर्ण, द्वित्व या संयुक्त वर्णों से रहित और समास भी अल्प हो, ऐसे सानुनासिक वर्ण युक्त रचना को “उपनागरिका" वृत्ति, अोज गुण की व्यंजना करने वाले 'ट' वर्गादि की अधिकता, रेफ सहित संयुक्ताक्षर एवं द्वित्व वर्ण की वाहुल्यता-युक्त कठोर रचना 'परुषा' वृत्ति तथा मधुर और प्रोज-गुण-व्यंजक वों को छोड़ कर शेप वर्णों की रचना, जो समास-रहित वा छोटे समास वाली हो उसे "कोमला-वृत्ति' कहा है । किन्हीं-किन्हीं श्राचार्यों ने "रीति" नाम देते हुए इनके भेद-"वैदर्भी, “पांचाली" और "गौड़ी" नाम से किये हैं।" - प्रथम उपनागरिका बृत्ति-उदाहरन जथा- मंजुल - बंजुल कुजन गुजत - कुजत' भृग - बिहंग अयाँ नी। चर्दैन, चंपक - बृदन संग, सुरंग, लबंग - लता लपटॉनी ॥ कंस-विधंसन करि' नंद-नंदन, सुछंद तहीं करि है रजधाँ नी। झखतक्यों मथुरा-ससुरारि, सुँने न [ने मृदु मंगल-बानी ।। द्वितीय 'परुषा' बृत्ति उदाहरन नथा- मरकट • जुद्ध - बिरुद्ध ऋद्ध अरि • ठट्ट दपढ़ें। भन्द-सब्द करि गर्जि, तर्जिझुकि झपि झपट्टे । लच्छ, लच्छ रच्छस बिपच्छ धरि धरॅन पट्ट के। तिरूख'• सब बजादि अस्त्र एकौ न अट्ट के। कृत ब्यक रक्त मोनित-सने, जत्र-तत्र अनहद भुभ। तस बिक्रम कत्थ भकत्थ जस, रॅन'समत्थ दसरत्थ-सुभ। तृतीय कोमला बृत्ति उदाहरन जथा--- प्यो बिरमें बरमें करि बंदन, बंदन को बिधि बेध-बध-री। 'दास' घंनी "गरजे गुरजेंसी लगै झर सो हियरा "भुरसै-री॥ पा०-१. (प्र०) कुजन...I ( रा० पु० प्र०)...कु जन-कुजन गुजत भृग... २. ( का० ) (३०) अरुझानी । ३. (का० ) (३०) (प्र०) (सं० पु० प्र०) के। ४. ( का० )(३०) (प्र०) नंद-नंद... ५.(३०) भाँखति । ६. (३०) सुनेंन...। ७. ( का०)(३०) (प्र०) मुद.... (का०) (३०) झपि...। ६.(३०) राख्छस...। १०. (३०) देखि...। ११. ( का० ) (३०) स्रोतरखनी....(सं० पु० प्र०) स्रोतस्पिती, जन...। १२. (सं० पु० प्र०) मत्थ...। १३. (प्र०) घिरि में करि बंदन, बुदन... १४. .(प्र०) घनों.. । १५. (का०)( )(प्र०) हियरी....